1.श्री आदिनाथ चालीसा
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन को, करुं प्रणाम |
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ||
सर्व साधु और सरस्वती जिन मन्दिर सुखकार |
आदिनाथ भगवान को मन मन्दिर में धार ||
-: चौपाई :-
जै जै आदिनाथ जिन स्वामी,
तीनकाल तिहूं जग में नामी |
वेष दिगम्बर धार रहे हो,
कर्मों को तुम मार रहे हो ||1.
हो सर्वज्ञ बात सब जानो,
सारी दुनियां को पहचानो |
नगर अयोध्या जो कहलाये,
राजा नाभिराज बतलाये ||2
मरुदेवी माता के उदर से,
चैत वदी नवमी को जन्मे |
तुमने जग को ज्ञान सिखाया,
कर्मभूमी का बीज उपाया ||3
कल्पवृक्ष जब लगे बिछरने,
जनता आई दुखड़ा कहने |
सब का संशय तभी भगाया,
सूर्य चन्द्र का ज्ञान कराया ||4
खेती करना भी सिखलाया,
न्याय दण्ड आदिक समझाया
तुमने राज किया नीति का,
सबक आपसे जग ने सीखा ||5
पुत्र आपका भरत बताया,
चक्रवर्ती जग में कहलाया |
बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे,
भरत से पहले मोक्ष सिधारे ||6
सुता आपकी दो बतलाई,
ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई ,
उनको भी विद्या सिखलाई,
अक्षर और गिनती बतलाई ||7
एक दिन राजसभा के अन्दर,
एक अप्सरा नाच रही थी
आयु उसकी बहुत अल्प थी,
इसीलिए आगे नहीं नाच रही थी ||8
विलय हो गया उसका सत्वर,
झट आया वैराग्य उमड़कर |
बेटों को झट पास बुलाया,
राज पाट सब में बंटवाया ||9
छोड़ सभी झंझट संसारी,
वन जाने की करी तैयारी |
राव (राजा) हजारों साथ सिधाए,
राजपाट तज वन को धाये ||10
लेकिन जब तुमने तप किना,
सबने अपना रस्ता लीना |
वेष दिगम्बर तजकर सबने,
छाल आदि के कपड़े पहने ||11
भूख प्यास से जब घबराये,
फल आदिक खा भूख मिटाये
तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये,
जो अब दुनियां में दिखलाये ||12
छैः महीने तक ध्यान लगाये,
फिर भोजन करने को धाये |
भोजन विधि जाने नहिं कोय,
कैसे प्रभु का भोजन होय ||13
इसी तरह बस चलते चलते,
छः महीने भोजन बिन बीते |
नगर हस्तिनापुर में आये,
राजा सोम श्रेयांस बताए ||14
याद तभी पिछला भव आया,
तुमको फौरन ही पड़धाया |
रस गन्ने का तुमने पाया,
दुनिया को उपदेश सुनाया ||15
तप कर केवल ज्ञान पाया,
मोक्ष गए सब जग हर्षाया |
अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर,
चांदखेड़ी भंवरे के अन्दर ||16
उसका यह अतिशय बतलाया,
कष्ट क्लेश का होय सफाया |
मानतुंग पर दया दिखाई,
जंजीरें सब काट गिराई ||17
राजसभा में मान बढ़ाया,
जैन धर्म जग में फैलाया |
मुझ पर भी महिमा दिखलाओ,
कष्ट भक्त का दूर भगाओ ||18
सोरठाः-
पाठ करे चालीस दिन, नित चालीस ही बार |
चांदखेड़ी में आय के, खेवे धूप अपार ||
जन्म दरिद्री होय जो, ; होय कुबेर समान |
नाम वंश जग में चले, जिनके नहीं सन्तान ||