21.सिद्ध चक्र स्तुति-श्री सिद्धचक्र का पाठ

श्री सिद्ध चक्र का पाठ, करो दिन आठ ।
ठाठ से प्रानी, फल पायो मैना रानी ।।


मैना सुंदरी एक नारी थी, 
कौड़ी पति लाख दुखियारी थी ।
नहीं पड़े चैन दिन रैन व्यथित अकुलानी।।
 फल पायो मैना रानी ।।


जो पति का कुष्ठ मिटाउंगी,
 तो उभयलोक सुख पाउंगी ।
नहीं अजा गल स्तन वत्त, निष्फल जिंदगानी ।  
 फल पायो मैना रानी ।। 


एक दिन गयी जिं मंदिर में, 
दर्शन कर अति हरषी उर में ।
फिर लाखे साधू निर्ग्रन्थ दिगंबर ज्ञानी ।। 
 फल पायो मैना रानी ।।
 

बैठी कर मुनि को नमस्कार, 
निज निंदा करती बार बार ,
भर अश्रु नयन कही मुनि सों, दुखद कहानी ।।  
 फल पायो मैना रानी ।।
 

बोले मुनि पुत्री! धैर्य धरो, 
श्री सिद्धचक्र का पाठ करो ।
नहीं रहे कुष्ठ की तन में नाम निशानी ।। 
 फल पायो मैना रानी ।।
 

सुन साधू वचन हरषी मैना,
 नहीं होय झूठ मुनि की बैना ।
करके श्रद्धा श्री सिद्धचक्र की ठानी।। 
 फल पायो मैना रानी ।।
 

जब पर्व अढाई आया था, 
उत्सव युक्त पाठ कराया था ।
सब के तन छिड़का यन्त्र न्वहन का पानी ।। 
 फल पायो मैना रानी ।।
 

गंधोदक छिड़क वसु दिन में, 
नहीं रहा कुष्ठ किंचित तन में ।
भई सात शतक की काय स्वर्ण समानी ।।
 फल पायो मैना रानी ।।


भाव भोग भोगी योगीश भये, 
श्रीपाल कर्म हनी मोक्ष गए ।
दूजे भव मैना पावें शिव रजधानी ।। 
 फल पायो मैना रानी ।।
 

जो पाठ करे मन वच तन से, 
वे छुट जाए भव बंधन से।
मक्खन मत करो विकल्प कहे जिनवाणी । 
 फल पायो मैना रानी ।।


श्री सिद्ध चक्र का पाठ, करो दिन आठ ।
ठाठ से प्रानी, फल पायो मैना रानी ।।