17.भगवान श्री कुंथुनाथ की आरती

श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं,
आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं,
सांसारिक सुख के संग आात्मक सुख भी मिलते हैं,
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं।।टेक.।।

जब गर्भ में प्रभु तुम आए-हां आए,
पितु सूरसेन श्रीकांता माँ हरषाए।
सुर वन्दन करने आए-हां आए,
श्रावण वदि दशमी गर्भकल्याण मनाएं।
हस्तिनापुरी की उस पावन, धरती को नमते हैं,
आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं।

वैशाख सुदी एकम में-एकम में,
जन्मे जब सुरगृह में बाजे बजते थे।
सुरशैल शिखर ले जाकर-ले जाकर,
सब इन्द्र सपरिकर करें न्हवन जिनशिशु पर।
जन्मकल्याणक से पावन,उस गिरि को जजते हैं,
आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं।

फिर बारह भावना भाई-हां भाई,
वैशाख सुदी एकम दीक्षा तिथि आई।
लौकान्तिक सुरगण आए-हां आए,
वैराग्य प्रशंसा द्वारा प्रभु गुण गाएं।
उन मनपर्ययज्ञानी मुनि को, शत-शत नमते हैं,
आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं।

केवलरवि था प्रगटा-हां प्रगटा,
प्रभु समवसरण रच गया अलौकिक जो था।
दिव्यध्वनि पान करे जो-हां करे जो,
भववारिधि से तिर निज कल्याण करे वो।
चार कल्याणक भूमि हस्तिनापुर को नमते हैं,
आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं।

वैशाख सुदी एकम तिथि- हां एकम तिथि,
मुक्तिश्री नामा इक प्रियतमा वरी थी।
सम्मेदशिखर गिरि पावन-हां पावन,
प्रभुवर ने पाया मोक्षधाम मनभावन।।
उसी धाम की चाह ‘‘चंदनामति’’, हम करते हैं।
आरति करकेजनम-जनम के पाप विनशते हैं।