11.पारस प्यारा लागो,चँवलेश्वर प्यारा लागो

पारस प्यारा लागो,चँवलेश्वर प्यारा लागो।

थांकी बांकडली झाड्यां में, 

गैलो भूल्यो जी म्हारा पारसजी,

म्हैं रस्तो कियां पावांला॥

पारस प्यारा लागो,चँवलेश्वर प्यारा लागो।

 

अब डर लागे छै म्हाने,हर बार पुकारां थांने।

थांका पर्वत रा जंगल में, 

सिंह धडूके हो चँवलेश्वर जी,

म्हैं रस्तो कियां पावांला॥

पारस प्यारा लागो,चँवलेश्वर प्यारा लागो।

 

थे राग द्वेष न त्यागा,म्है आया भाग्या भाग्या।

थांका पर्वत री भाटा की, 

ठोकर लागी हो चँवलेश्वर जी,

म्हैं रस्तो कियां पावांला॥

पारस प्यारा लागो,चँवलेश्वर प्यारा लागो।

 

म्हे अजमेर शहर से चाल्या,थांका ऊंचा देख्या माला।

म्हाने पेड्या पेड्या चढवो,

 प्यारो लागे हो चँवलेश्वर जी,

म्हैं रस्तो कियां पावांला॥

पारस प्यारा लागो,चँवलेश्वर प्यारा लागो।

 

थांका विशाल दर्शन पाया,जद तन मन से हरषाया।

थांकी छतरी की तो शोभा, 

न्यारी लागे हो चँवलेश्वर जी,

म्हैं रस्तो कियां पावांला॥

पारस प्यारा लागो,चँवलेश्वर प्यारा लागो।

 

थे झूंठ बोलबो छोडो,और धर्म सूं नातो जोड।

म्हारी बांकडली झाड्यां में, 

गैलो पावो जी म्हारा सेवक जी,

थे सीधो रस्तो पावोला॥

पारस प्यारा लागो,चँवलेश्वर प्यारा लागो।