15.मेरे महावीर झूले पलना
मेरे महावीर झूले पलना,
सन्मति वीर झूले पलना |
काहे को प्रभु को बनो रे पालना,
काहे के लागे फुँदना |
रत्नो का पलना मोतियों के फुँदना,
जगमग कर रहा अंगना |
ललना का मुख निरख के बोले,
सूरज चाँद निकलना || (1)
कौन प्रभु को पलना झुलावे,कौन सुमंगल गावे |
देवीय आवें पलना झुलावे,देव सुमन बरसावें |
पालनहारे पलना झूले,बन त्रिशला के ललनाl
त्रिशला रानी मोदक लावे, सिद्धारथ हर्षावें |
मणि-मुक्ता और सोना-रूपा दोनों हाथ उठावें |
कुण्डलपुर से आज स्वर्ग का स्वाभाविक है जलनाl
निर्मल नैना निर्मल मुख पर, निर्मल हास् की रेखा |
यह निर्मल मुखड़ा सुरपति ने सहस नयन कर देखाl
निर्मल प्रभु का दर्श किये बिन भाव होये निर्मल नाl