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मधुबन के मंदिरो में भगवान बस रहा है।
पारस प्रभु के दर पे सोना बरस रहा है ॥
आध्यात्म का यह सोना पारस ने खुद दिया है,
ऋषिओं ने इस धरा से निर्वाण पद लिया है ।
सदिओं से इस शिखर का स्वर्णिम सुयश रहा है,
पारस प्रभु के दर पे सोना बरस रहा है ॥
मधुबन के मंदिरो में भगवान बस रहा है।
तीर्थंकरों के तप से पर्वत हुआ यह पावन,
केवल्य रश्मिओं का बरसा यहां सावन ।
उस ज्ञानामृत के जल से पर्वत सरस रहा है,
पारस प्रभु के दर पे सोना बरस रहा है ॥
मधुबन के मंदिरो में भगवान बस रहा है।
पर्वत के गर्भ में है रत्नो का है वो खजाना,
जब तक है चंन्द सूरज होगा नहीं पुराना ।
जन्मा है जैन कुल में तू क्यों तरस रहा है,
पारस प्रभु के दर पे सोना बरस रहा है ॥
मधुबन के मंदिरो में भगवान बस रहा है।
नागो को भी यह पारस राजेन्द्र सम बनाए,
उपसरग के समय जो धेन्द्र बन के आए ।
पारस के सर पे देवी पद्मावती यहाँ है,
पारस प्रभु के दर पे सोना बरस रहा है ॥
मधुबन के मंदिरो में भगवान बस रहा है।