11.दृष्टाष्टक स्त्रोत- सकलचन्द्र जी मुनीन्द्र

दृष्टं जिनेन्द्र - भवनं भव - ताप - हारि ,
भव्यात्मनां विभव - सम्भव - भूरि - हेतु ।
 दुग्धाब्धि - फेन - धवलोज्ज्वल - कूट - कोटी ,
नद्ध - ध्वज - प्रकर - राजि - विराजमानम् ॥1


दृष्टं जिनेन्द्र - भवनं भुवनैक - लक्ष्मी -
 धामर्द्धि - वर्धित - महामुनि - सेव्यमानम् ।
विद्याधरामर - वधू - जन - पुष्प 1 - दिव्य -
 पुष्पाञ्जलि -प्रकर -शोभित -भूमि -भागम् ॥2


दृष्टं जिनेन्द्र भवनं भवनादि वास -
 विख्यात - नाक - गणिका - गण - गीयमानम् ।
 नाना - मणि - प्रचय - भासुर - रश्मि - जाल -
 व्यालीढ निर्मल - विशाल - गवाक्ष - जालम् ॥3


दृष्टं जिनेन्द्र - भवनं सुर - सिद्ध - यक्ष -
 गन्धर्व - किन्नर - करार्पित - वेणु - वीणा ।
सङ्गीत - मिश्रित - नमस्कृत - धीर - नादै -
रापूरिताम्बर - तलोरु - दिगन्तरालम् ॥4


 दृष्टं जिनेन्द्र - भवनं विलसद् - विलोल -
 माला -कुलालि -ललितालक -विभ्रमाणाम् ।
माधुर्य - वाद्य - लय - नृत्य - विलासिनीनां  ,
 लीला -चलद् -वलय -नूपुर - नाद -रम्यम् ।5

  दृष्टं जिनेन्द्र - भवनं मणि - रत्न - हेम -
 सारोज्ज्वलैः कलश - चामर - दर्पणाद्यैः ।
सन्मङ्गलैः सतत् - मष्ट - शत - प्रभेदैर् -
 विभ्राजितं विमल -मौक्तिक -दाम -शोभम् ॥6


 दृष्टं जिनेन्द्र -भवनं -वर -देवदारू -
कर्पूर -चन्दन -तरुष्क -सुगन्धि -धूपैः ।
 मेघायमान-गगने पवनाभिघात -चञ्चच् -
चलद् - विमल - केतन - तुङ्ग - शालम् ॥7


दृष्टं जिनेन्द्र - भवनं - धवलातपत्रच् -
छाया - निमग्न - तनु - यक्षकुमार - वृन्दः ।
दोधूयमान - सित - चामर - पङ्क्ति - भासं ,
भामण्डल - द्युति - युत - प्रतिमाभिरामम् ॥8


 दृष्टं जिनेन्द्र भवनं विविध - प्रकार -
पुष्पोपहार - रमणीय - सुरत्न - भूमिं ।
नित्यं वसन्त - तिलक - श्रिय मादधानं ,
सन् -मङ्गलं सकल -चन्द्र -मुनीन्द्र -वन्द्यम् ॥9


दृष्टं मयाद्य मणि - काञ्चन - चित्र - तुङ्ग ,
सिंहासनादि - जिनबिम्ब - विभूति युक्तम् ।
 चैत्यालयं यदतुलं परिकीर्तितं मे ,
सन् -मङ्गलं सकल -चन्द्र -मुनीन्द्र - वन्द्यम्॥10
                            ( इति )