19.नवग्रह स्त्रोत
(इस ‘नवग्रहशाांति स्तोत्र’ में चैबीसों तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा नवग्रहों की शांति का वर्णन किया गया है। यह संस्कृत के नवग्रह शांति स्तोत्र का पद्यानुवाद है।)
त्रैलोक्यगुरू तीर्थंकर प्रभु को,
श्रद्धायुत मैं नमन करूं।
सतगुरू के द्वारा प्रतिभासित,
जिनवर वाणी को श्रवण करूं।।
भवदुःख से दुःखी प्राणियों को,
सुख प्राप्त कराने हेतु कहूं।
कर्मोदय वश संग लगे हुए,
ग्रह शांति हेतु जिनवचन कहूं।।1
नभ में सूरज चन्दा ग्रह के,
मंदिर में जो जिनबिम्ब अधर।
निज तुष्टि हेतु उनकी पूजा,
मैं करूं पूर्ण विधि से रूचिधर।।
चन्दन लेपन पुष्पांजलि कर,
सुन्दर नैवेद्य बना करके।
अर्चना करूं श्री जिनवर की,
मनयागिरि धूप जलाकर के।।2।।
ग्रह सूर्य अरिष्ट निवारक श्री,
पद्मप्रभु स्वामी को वन्दूं।
श्री चन्द्र भाौम ग्रह शांति हुए,
चन्द्रप्रभु वासुपूज्य वन्दूं।।
बुध ग्रह से होने वाले कष्ट,
निवारक विमल अनंत जिनम्।
श्री धर्म शांति कुन्थू अर नमि,
सन्मति प्रभु को भी करूं नमन।।3।।
प्रभु ऋषभ अजित जिनवर सुपाश्र्व,
अभिनन्दन शीतल सुमतिनाथ।
गुरूग्रह की शांति करें संभव,
श्रेयांस जिनेश्वर अीाी आठ।।
ग्रह शुक्रअरिष्टनिवारक भगवन्,
पुष्पदंत जाने जाते।
शनि ग्रह की शांती में हेतू,
मुनिसुव्रत जिन माने जाते।।4।।
श्री नेमिनाथ तीर्थंकर प्रभु,
राहू ग्रह की शांती करते।
श्री मल्लि पश्र्व जिनवर दोनों,
केतू ग्रह की बाधा हरते।।
ये वर्तमान कालिक चैबिस,
तीर्थीं सब सुख देते हैं।
आधी व्यााधी का क्षय करके,
ग्रह की शांती कर देते हैं।।5।।
आकाशगमन वाले ये ग्रह,
यदि पीडि़त किसी को करते हैं।
प्राणी की जन्मलग्न एवं,
राशी के संग ग्रह रहते हैं।।
तब बुद्धिमान जन तत्सम्बंधित,
ग्रह स्वामी को भजते हैं
जिस ग्रह के नाशक जो जिनवर,
उन नाम मंत्र वो जपते हैं।।6।।
इस युग के पंचम श्रुतकेवलि,
श्री भद्रबाहु मुनिाज हुए।
वे गुरू इस नवग्रह शांती की,
विधि बतलाने में प्रमुख हुए।।
जो प्रातः उठकर हो पवित्र,
तनम न से यह स्तुति पढ़ते।
वे पद-पद पर आने वाली,
आपत्ति हरें शांती लभते।।7।।
-दोहा-
नवग्रह शांती के लिए, नमूं जिनेश्वर पाद।
तभी‘‘चन्दना’’क्षेम सुख,का मिलता साम्राज्य।।8