22.पारसनाथ स्त्रोत

नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं । 
शतेन्द्रं सु पूजैं भजै नाय शीशं ॥

मुनीन्द्रं गणेन्द्रं नमो जोडि हाथं ।
 नमो देव देवं सदापार्श्वनाथ। ॥1


गजेन्द्रं मृगेन्द्रं गह्यो तू छुड़ावै । 
महा आगतैं नागतैं तु बचावै॥

महावीरतैं युध्द में तू जितावै ।
 महा रोगतैं बंधतैं तू छुड़ावै ॥2


दु:खी दु:खहर्ता सुखी सुक्खकर्ता । 
सदा सेवकों को महानन्द भर्ता ।

हरे यक्ष राक्षस भूतं पिशाचं l
 विषं डांकिनी विघ्न के भय अवाचं ॥3


 दरिद्रीन को द्रव्यकेदान दीने ।
 अपुत्रीन को तू भलेपुत्र कीने ॥

महासंकटो सेनिकारै विधाता ।
 सबै सम्पदा सर्व को देहि दाता ॥4


महाचोर को वज्रको भय निवारैं । 
महापौन के पुँजतै तू उबारैं ॥

महाक्रोध की अग्नि को मेघ धारा । 
महा लाभ-शैलेश को वज्र भारा ॥5


 महा मोह अंधेरेकोज्ञान भानं । 
महा कर्म कांतार को दौ प्रधानं ॥

किये नाग नागिन अधेलोक स्वामी।
हरयो मान तू दैत्य को हो अकामी ॥6


तुही कल्पवृक्षं तुही काम धेनं । 
तुही दिव्य चिंतामणी नाग एनं ॥

पुश नर्क के दु:खतैं तू छुडावैं । 
महास्वर्गतैं मुक्ति मैं तू बसावै ॥7


 करै लोह को हेम पाषाण नामी । 
रटै नामसौं क्यों न हो मोक्षगामी ॥

करै सेव ताकी करैं देव सेवा । 
सुन बैन सोही लहै ज्ञान मेवा ॥8


 जपै जाप ताको नहीं पाप लागैं ।
 धरे ध्यानताके सबै दोष भागै ॥

बिना तोहि जाने धरे भव घनेरे । 
तुम्हारी कृपा तैं सरैं काज मेरे ॥9॥

 :: दोहा ::

गणधर इन्द्र न कर सकैं, तुम विनती भगवान ।

‘द्यानत’ प्रीति निहारकैं, कीजै आप समान ॥