26.श्री आदिनाथ जी जिन पूजा

अडिल्ल परमपूज्य वृषभेष स्वयंभू देवजू |

पिता नाभि मरुदेवि करें सुर सेवजू ||

कनक वरण तन-तुंग धनुष पनशत तनो |

कृपासिंधु इत आइ तिष्ठ मम दुख हनो |1|

ॐह्रीं श्रीआदिनाथ जिन!अत्र अवतर अवतर संवौषट्|

ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिन ! अत्र तिष्ठ ठः ठः |

ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिन अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

हिमवनोद् भव वारि सु धारिके,जजत हौं गुनबोध उचारिके |

परमभाव सुखोदधि दीजिये, जन्ममृत्यु जरा क्षय कीजिये ||

ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|

मलय चन्दन दाहनिकन्दनं, घसि उभै कर में करि वन्दनं |

जजत हौं प्रशमाश्रय दीजिये, तपत ताप तृषा छय कीजिये ||

ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|

अमल तन्दुल खंडविवर्जितं, सित निशेष महिमामियतर्जितं|

जजत हौं तसु पुंज धरायजी,अखय संपति द्यो जिनरायजी||

ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|

कमल चंपक केतकि लीजिये, मदनभंजन भेंट धरीजिये |

परमशील महा सुखदाय हैं, समरसूल निमूल नशाय हैं ||

ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|

सरस मोदनमोदक लीजिये, हरनभूख जिनेश जजीजिये |

सकल आकुल अंतकहेतु हैं, अतुल शांत सुधारस देतु हैं ||

ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय क्षुधादिरोगविनाशनाय नैवेद्यं नि0स्वाहा |5|

निविड़ मोह महातम छाइयो, स्वपर भेद न मोहि लखाइयो |

हरनकारण दीपक तासके, जजत हौं पद केवल भासके ||

ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|

अगर चन्दन आदिक लेय के, परम पावन गंध सु खेय के |

अगनिसंग जरें मिस धूम के, सकल कर्म उड़े यह घूम के ||

ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|

सुरस पक्व मनोहर पावने, विविध ले फल पूज रचावने |

त्रिजगनाथ कृपा अब कीजिये, हमहिं मोक्ष महाफल दीजिये ||

ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|

जलफलादि समस्त मिलायके, जजत हौं पद मंगल गायके |

भगत वत्सल दीन दयालजी,करहु मोहि सुखी लखि हालजी
||

ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|

पंचकल्याणक अर्घ्यावली
असित दोज आषाढ़ सुहावनो, गरभ मंगल को दिन पावनो |

हरि सची पितुमातहिं सेवही, जजत हैं हम श्री जिनदेव ही ||

ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णा द्वितीयादिने गर्भमगंलप्राप्ताय श्री वृषभदेवाय अर्घ्य नि0 |1|

असित चैत सु नौमि सुहाइयो, जनम मंगल ता दिन पाइयो |

हरि महागिरिपे जजियो तबै, हम जजें पद पंकज को अबै ||

ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा नवमीदिने जन्ममगंलप्राप्ताय श्रीवृषभदेवाय अर्घ्य नि0 |2|

असित नौमि सु चैत धरे सही, तप विशुद्ध सबै समता गही |

निज सुधारस सों भर लाइके, हम जजें पद अर्घ चढ़ाइके ||

ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा नवमीदिने दीक्षामगंलप्राप्ताय श्रीवृषभदेवाय अर्घ्यं नि0 |3|

असित फागुन ग्यारसि सोहनों,परम केवलज्ञान जग्यो भनौं |

हरि समूह जजें तहँ आइके, हम जजें इत मंगल गाइके ||

ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीवृषभदेवाय अर्घ्यं नि0 |4|

असित चौदसि माघ विराजई, परम मोक्ष सुमंगल साजई |

हरि समूह जजें कैलाशजी, हम जजें अति धार हुलास जी ||

ॐ ह्रीं माघकृष्णा  मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीवृषभदेवाय अर्घ्यं नि0 |5|

जयमाला
जय जय जिनचन्दा आदि जिनन्दा,हनि भवफन्दा कन्दा जू |

वासव शतवंदा धरि आनन्दा,ज्ञान अमंदा नन्दा जू |ज

त्रिलोक हितंकर पूरन पर्म, प्रजापति विष्णु चिदातम धर्म |

जतीसुर ब्रह्मविदाबंर बुद्ध,वृषंक अशंक क्रियाम्बुधि शुद्ध |2|

जबै गर्भागम मंगल जान,तबै हरि हर्ष हिये अति आन |

पिता जजनी पद सेव करेय,अनेक प्रकार उमंग भरेय|3|

जन्मे जब ही तब ही हरि आय,गिरेन्द्रविषै किय न्हौन सुजाय |

नियोग समस्त किये तित सार,सु लाय प्रभू पुनि राज अगार |4|

पिता कर सौंपि कियो तित नाट,अमंद अनंद समेत विराट |

सुथान पयान कियो फिर इंद,इहां सुर सेव करें जिनचन्द |5|

कियौ चिरकाल सुखाश्रित राज, प्रजा सब आनँद को तित साज |

सुलिप्त सुभोगिनि में लखि जोग,कियो हरि ने यह उत्तम योग |6|

निलंजन नाच रच्यो तुम पास,नवों रस पूरित भाव विलास |

बजै मिरदंग दृम दृम जोर,चले पग झारि झनांझन जोर |7|

घना घन घंट करे धुनि मिष्ट, बजै मुहचंग सुरान्वित पुष्ट |

खड़ी छिनपास छिनहि आकाश, लघु छिन दीरघ आदि विलास |8|

ततच्छन ताहि विलै अविलोय, भये भवतैं भवभीत बहोय |

सुभावत भावन बारह भाय, तहां दिव ब्रह्म रिषीश्वर आय |9|

प्रबोध प्रभू सु गये निज धाम, तबे हरि आय रची शिवकाम |

कियो कचलौंच प्रयाग अरण्य, चतुर्थम ज्ञान लह्यो जग धन्य |10|

धर् यो तब योग छमास प्रमान,दियो श्रेयांस तिन्हें इखु दान |

भयो जब केवलज्ञान जिनेंद्र,समोसृत ठाठ रच्यो सु धनेंद्र|11

तहां वृष तत्व प्रकाशि अशेष,कियो फिर निर्भय थान प्रवेश |

अनन्त गुनातम श्री सुखराश,तुम्हें नित भव्य नमें शिव आश |12|

यह अरज हमारी सुन त्रिपुरारी, जन्म जरा मृतु दूर करो |

शिवसंपति दीजे ढील न कीजे,निज लख लीजे कृपा धरो|13|

ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

जो ऋषभेश्वर पूजे,मनवचतन भाव शुद्ध कर प्रानी |

सो पावै निश्चै सों,भुक्ति औ मुक्ति सार सुख थानी|14

इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)