33.श्री सुपार्श्वनाथ जी जिन पूजा

जय जय जिनिंद गनिंद इन्द,नरिंद गुन चिंतन करें|
तन हरीहर मनसम हरत मन,लखत उर आनन्द भरें||
नृप सुपरतिष्ठ वरिष्ठ इष्ट,महिष्ठ शिष्ट पृथी प्रिया|
तिन नन्दके पद वन्द वृन्द,अमंद थापत जुतक्रिया||

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

उज्ज्वल जल शुचि गंध मिलाय, 
कंचनझारी भरकर लाय |
दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ||
तुम पद पूजौं मनवचकाय, 
देव सुपारस शिवपुरराय |
दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ||

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|

मलयागिर चंदन घसि सार, 
लीनो भवतप भंजनहार |
दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ||
तुम पद पूजौं मनवचकाय,देव सुपारस...
ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|

देवजीर सुखदास अखंड, 
उज्ज्वल जलछालित सित मंड |
दया निधि हो,जय जगबंधु दया निधि हो||
तुम पद पूजौं मनवचकाय,देव सुपारस...

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|

प्रासुक सुमन सुगंधित सार, 
गुंजत अलि मकरध्वजहार |
दया निधि हो,जय जगबंधु दया निधि हो||
तुम पद पूजौं मनवचकाय,देव सुपारस...

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|

छुधाहरण नेवज वर लाय, 
हरौं वेदनी तुम्हें चढ़ाय |
दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ||
तुम पद पूजौं मनवचकाय,देव सुपारस...

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|

ज्वलित दीप भरकरि नवनीत, 
तुम ढिग धारतु हौं जगमीत |
दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ||
तुम पद पूजौं मनवचकाय,देव सुपारस...

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|

दशविधि गन्ध हुताशन माहिं, 
खेवत क्रूर करम जरि जाहिं |
दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ||
तुम पद पूजौं मनवचकाय, देव सुपारस ...
दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ||

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|

श्रीफल केला आदि अनूप,
ले तुम अग्र धरौं शिवभूप |
दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ||
तुम पद पूजौं मनवचकाय,देव सुपारस...

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|

आठों दरब साजि गुनगाय, 
नाचत राचत भगति बढ़ाय |
दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ||
 तुम पद पूजौं मनवचकाय,देव सुपारस...

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|

पंच कल्याणक अर्घ्यावली
सुकल भादव छट्ठ सु जानिये, 
गरभ मंगल ता दिन मानिये |
करत सेव शची रचि मात की, 
अरघ लेय जजौं वसु भांत की ||

ॐ ह्रीं भाद्रपदशुक्लाषष्ठीदिने गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीसुपार्श्व0 अर्घ्यं नि0 |1|

सुकल जेठ दुवादशि जन्मये, 
सकल जीव सु आनन्द तन्मये |
त्रिदशराज जजें गिरिराजजी, 
हम जजें पद मंगल साजजी ||

ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लाद्वादश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीसुपार्श्व0 अर्घ्यं नि0 |2|

जनम के तिथि पे श्रीधर ने धरी, 
तप समस्त प्रमादन को हरी |
नृप महेन्द्र दियो पय भाव सौं, 
हम जजें इत श्रीपद चाव सों ||

ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लाद्वादश्यां तपोमंगलप्राप्ताय श्रीसुपार्श्व0 अर्घ्यं नि0 |3|

भ्रमर फागुन छट्ठ सुहावनो, 
परम केवलज्ञान लहावनो |
समवसर्न विषैं वृष भाखियो, 
हम जजें पद आनन्द चाखनो ||

ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा षष्ठीदिने केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीसुपार्श्व0 अर्घ्यं नि0 |4|

असित फागुन सातय पावनो, 
सकल कर्म कियो छय भावनो |
गिरि समेदथकी शिव जातु हैं, 
जजत ही सब विघ्न विलातु हैं ||

ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा सप्तमीदिने मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीसुपार्श्व0 अर्घ्यं नि0 |5|

जयमाला
दोहाः- तुंग अंग धनु दोय सौ, शोभा सागरचन्द |
मिथ्यातपहर सुगुनकर, जय सुपास सुखकंद |1|

जयति जिनराज शिवराज हितहेत हो |
परम वैराग आनन्द भरि देत हो ||
गर्भ के पूर्व षट्मास धनदेव ने |
नगर निरमापि वाराणसी सेव में |2|

गगन सों रतन की धार बहु वरषहीं |
कोड़ि त्रैअर्द्ध त्रैवार सब हरषहीं ||
तात के सदन गुनवदन रचना रची |
मातु की सर्वविधि करत सेवा शची |3|

भयो जब जनम तब इन्द्र-आसन चल्यो |
होय चकित तब तुरित अवधितैं लखि भल्यो ||
सप्त पग जाय शिर नाय वन्दन करी |
चलन उमग्यो तबै मानि धनि धनि घरी |4|

सात विधि सैन गज वृषभ रथ बाज ले |
गन्धरव नृत्यकारी सबै साज ले ||
गलित मद गण्ड ऐरावती साजियो |
लच्छ जोजन सुतन वदन सत राजियो |5|

वदन वसुदन्त प्रतिदन्त सरवर भरे |
ता सु मधि शतक पनबीस कमलिनि खरे ||
कमलिनी मध्य पनवीस फूले कमल |
कमल-प्रति-कमल मँह एक सौ आठ दल |6|

सर्वदल कोड़ शतबीस परमान जू |
ता सु पर अपछरा नचहिं जुतमान जू ||
तततता तततता विततता ताथई |
धृगतता धृगतता धृगतता में लई |7|

धरत पग सनन नन सनन नन गगन में |
नूपुरे झनन नन झनन नन पगन में ||
नचत इत्यादि कई भाँति सों मगन में |
केई तित बजत बाजे मधुर पगन में |8|

केई दृम दृम दुदृम दृम मृदंगनि धुनै |
केई झल्लरि झनन झंझनन झंझनै ||
केई संसाग्रते सारंगि संसाग्र सुर |
केई बीना पटह बंसि बाजें मधुर |9|

केई तनतन तनन तनन ताने पुरैं |
शुद्ध उच्चारि सुर केई पाठैं फुरैं ||
केइ झुकि झुकि फिरे चक्र सी भामिनी |
धृगगतां धृगगतां पर्म शोभा बनी |10|

केई छिन निकट छिन दूर छिन थूल-लघु |
धरत वैक्रियक परभाव सों तन सुभगु ||
केई करताल-करताल तल में धुनें |
तत वितत घन सुषिरि जात बाजें मुनै |11|

इन्द्र आदिक सकल साज संग धारिके |
आय पुर तीन फेरी करी प्यार तें ||
सचिय तब जाय परसूतथल मोद में |
मातु करि नींद लीनों तुम्हें गोद में |12|

आन-गिरवान नाथहिं दियो हाथ में |
छत्र अर चमर वर हरि करत माथ में ||
चढ़े गजराज जिनराज गुन जापियो |
जाय गिरिराज पांडुक शिला थापियो |13|

लेय पंचम उदधि-उदक कर कर सुरनि |
सुरन कलशनि भरे सहित चर्चित पुरनि ||
सहस अरु आठ शिर कलश ढारें जबै |
अघघ घघ घघघ घघ भभभ भभ भौ तबै |14|

धधध धध धधध धध धुनि मधुर होत है |
भव्य जन हंस के हरस उद्योत है ||
भयो इमि न्हौन तब सकल गुन रंग में |
पोंछि श्रृंगार कीनों शची अंग में |15|

आनि पितुसदन शिशु सौंपि हरि थल गयो |
बाल वय तरुन लहि राज सुख भोगियो ||
भोग तज जोग गहि, चार अरि कों हने |
धारि केवल परम धरम दुइ विध भने |16|

नाशि अरि शेष शिवथान वासी भये |
ज्ञानदृग अरि शेष शिवथान वासी भये |
दीन जन की करुण सुन लीजिये |
धरम के नन्द को पार अब कीजिये |17|

घर्त्ताः- जय करुनाधारी, 
शिवहितकारी तारन तरन जिहाजा हो |
सेवत नित वन्दे मनआंनदे, 
भवभय मेटनकाजा हो |18|

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |

दोहाः- श्री सुपार्श्व पदजुगल जो जजें पढ़े यह पाठ |
अनुमोदें सो चतुर नर पावें आनन्द ठाठ ||
 इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)