36.श्री शीतलनाथ जी जिन पूजा

शीतलनाथ नमौं धरि हाथ, 
सु माथ जिन्हों भव गाथ मिटाये |

अच्युत तें च्युत मात सुनन्द के, 
नन्द भये पुर बद्दल आये ||

वंश इक्ष्वाकु कियो जिन भूषित, 
भव्यन को भव पार लगाये |

ऐसे कृपानिधि के पद पंकज, 
थापतु हौं हिय हर्ष बढ़ाये ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र !अत्र अवतर अवतर संवौषट् |

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

देवापगा सु वर वारि विशुद्ध लायो,
भृंगार हेम भरि भक्ति हिये बढ़ायो |
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|

श्रीखंड सार वर कुंकुम गारि लीनों |
कं संग स्वच्छ घिसि भक्ति हिये धरीनों ||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय  भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|

 मुक्ता-समान सित तंदुल सार राजे |
धारंत पुंज कलिकंज समस्त भाजें |
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|

श्री केतकी प्रमुख पुष्प अदोष लायो |
नौरंग जंग करि भृंग सु रंग पायो ||रागा0
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|

नैवेद्य सार चरु चारु संवारि लायो |
जांबूनद-प्रभृति भाजन शीश नायो ||
रागादिदोष मल मर्द्दन हेतु येवा |
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|

स्नेह प्रपूरित सुदीपक जोति राजे |
स्नेह प्रपूरित हिये जजतेऽघ भाजे ||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|

कृष्णागरू प्रमुख गंध हुताश माहीं |
खेवौं तवाग्र वसुकर्म जरंत जाही ||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|

 
निम्बाम्र कर्कटि सु दाड़िम आदि धारा |
सौवर्ण-गंध फल सार सुपक्व प्यारा ||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|

शुभ श्री-फलादि वसु प्रासुक द्रव्य साजे |
नाचे रचे मचत बज्जत सज्ज बाजे ||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|

  पंच कल्याणक अर्घ्यावली

आठैं वदी चैत सुगर्भ मांही, 
आये प्रभू मंगलरुप थाहीं |
सेवै शची मातु अनेक भेवा, 
चर्चौं सदा शीतलनाथ देवा ||

ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाऽष्टम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |1|

श्री माघ की द्वादशि श्याम जायो, 
भूलोक में मंगल सार आयो |
शैलेन्द्र पै इन्द्र फनिन्द्र जज्जे, 
मैं ध्यान धारौं भवदुःख भज्जे ||

ॐ ह्रीं माघकृष्णा द्वादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |2|

 श्री माघ की द्वादशि श्याम जानो, 
वैराग्य पायो भवभाव हानो |
ध्यायो चिदानन्द निवार मोहा, 
चर्चौं सदा चर्न निवारि कोहा ||

ॐ ह्रीं माघकृष्णा द्वादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |3|

 चतुर्दशी पौष वदी सुहायो, 
ताही दिना केवल लब्धि पायो |
शोभै समोसृत्य बखानि धर्मं, 
चचौं सदा शीतल पर्म शर्मं ||

ॐ ह्रीं पौषकृष्णाचतुर्दश्यां केवल ज्ञानमंगलमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |4|

 कुवार की आठैं शुद्ध बुद्धा, 
भये महा मोक्ष सरुप शुद्धा |
सम्मेद तें शीतलनाथ स्वामी, 
गुनाकरं ता सु पदं नमामी ||

ॐ ह्रीं आश्विनशुक्लाऽष्टम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |5|

 जयमाला

आप अनंत गुनाकर राजे, 
वस्तुविकाशन भानु समाजे |
मैं यह जानि गही शरना है,
 मोह महारिपु को हरना है |1|

 दोहाः- 
 हेम वरन तन तुंग धनु-नव्वै अति अभिराम |
सुर तरु अंक निहारि पद, 
पुनि पुनि करौं प्रणाम |2|

जय शीतलनाथ जिनन्द वरं, 
भव दाह दवानल मेघझरं |
दुख-भुभृत-भंजन वज्र समं, 
भव सागर नागर-पोत-पमं |3|

कुह-मान-मयागद-लोभ हरं, 
अरि विघ्न गयंद मृगिंद वरं |
वृष-वारिधवृष्टन सृष्टिहितू, 
परदृष्टि विनाशन सुष्टु पितू |4|

समवस्रत संजुत राजतु हो, 
उपमा अभिराम विराजतु हो |
वर बारह भेद सभा थित को, 
तित धर्म बखानि कियो हित को |5|

पहले महि श्री गणराज रजैं, 
दुतिये महि कल्पसुरी जु सजैं |
त्रितिये गणनी गुन भूरि धरैं,
 चवथे तिय जोतिष जोति भरैं |6|

तिय-विंतरनी पन में गनिये, 
छह में भुवनेसुर तिय भनिये |
भुवनेश दशों थित सत्तम हैं, 
वसु-विंतर उत्तम हैं |7|

नव में नभजोतिष पंच भरे, 
दश में दिविदेव समस्त खरे |
नरवृन्द इकादश में निवसें, 
अरु बारह में पशु सर्व लसें |8|

तजि वैर, प्रमोद धरें सब ही, 
समता रस मग्न लसें तब ही |
धुनि दिव्य सुनें तजि मोहमलं, 
गनराज असी धरि ज्ञानबलं |9|

सबके हित तत्त्व बखान करें, 
करुना-मन-रंजित शर्म भरें |
वरने षटद्रव्य तनें जितने, 
वर भेद विराजतु हैं तितने |10|

पुनि ध्यान उभै शिवहेत मुना, 
इक धर्म दुती सुकलं अधुना |
तित धर्म सुध्यान तणों गुनियो, 
दशभेद लखे भ्रम को हनियो |11|

पहलोरि नाश अपाय सही, 
दुतियो जिन बैन उपाया गही |
त्रिति जीवविषैं निजध्यावन है, 
चवथो सु अजीव रमावन है |12|

पनमों सु उदै बलटारन है, 
छहमों अरि-राग-निवारन है |
भव त्यागन चिंतन सप्तम है, 
वसुमों जितलोभ न आतम है |13|

नवमों जिन की धुनि सीस धरे, 
दशमों जिनभाषित हेत करे |
इमि धर्म तणों दश भेद भन्यो, 
पुनि शुक्लतणो चदु येम गन्यो |14|

सुपृथक्त-वितर्क-विचार सही, 
सुइकत्व-वितर्क-विचार गही |
पुनि सूक्ष्मक्रिया-प्रतिपात कही, 
विपरीत-क्रिया-निरवृत्त लही |15|

इन आदिक सर्व प्रकाश कियो, 
भवि जीवनको शिव स्वर्ग दियो |

पुनि मोक्षविहार कियो जिनजी, 
सुखसागर मग्न चिरं गुनजी |16|

अब मैं शरना पकरी तुमरी, 
सुधि लेहु दयानिधि जी हमरी |
भव व्याधि निवार करो अब ही, 
मति ढील करो सुख द्यो सब ही |17|

शीतल जिन ध्याऊं भगति बढ़ाऊं, 
ज्यों रतनत्रय निधि पाऊं |
भवदंद नशाऊं शिवथल जाऊं, 
फेर न भव वन में आऊं |18|

दिढ़रथ सुत श्रीमान् पंचकल्याणक धारी,
तिन पद जुगपद्म जो जजै भक्तिधारी |
सहजसुख धन धान्य, दीर्घ सौभाग्य पावे,
अनुक्रम अरि दाहै, मोक्ष को सो सिधावै ||

 इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)