37.श्री श्रेयांसनाथ जी जिन पूजा
विमल नृप विमला सुअन, श्रेयांसनाथ जिनन्द |
सिंहपुर जन्मे सकल हरि, पूजि धरि आनन्द ||
भव बंध ध्वंसनिहेत लखि मैं शरन आयो येव |
थापौं चरन जुग उरकमल में,जजनकारन देव|1
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |
कलधौत वरन उतंग हिमगिरि पदम द्रह तें आवई|
सुरसरित प्रासुक उदक सों भरि भृंग धार चढ़ावई||
श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवन वन्द आनन्दकन्द हैं|
दुखदंद फंद निकंद पूरन चन्द जोतिअमंद हैं||
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|
गोशीर वर करपूर कुंकुम नीर संग घसौं सही |
भवताप भंजन हेत भवदधि सेत चरन जजौं सही||
श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवन वन्द आनन्दकन्द हैं|
दुखदंद फंद निकंद पूरन चन्द जोतिअमंद हैं||
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|
सित शालि शशि दुति शुक्ति सुन्दर मुक्तकी उनहार हैं|
भरि थार पुंज धरंत पदतर अखयपद करतार हैं||
श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवन वन्द आनन्दकन्द हैं|
दुखदंद फंद निकंद पूरन चन्द जोतिअमंद हैं||
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|
सद सुमन सु मन समान पावन, मलय तें मधु झंकरें|
पद कमलतर धरतैं तुरित सो मदन को मद खंकरें||
श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवन वन्द आनन्दकन्द हैं|
दुखदंद फंद निकंद पूरन चन्द जोतिअमंद हैं||
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|
यह परम मोदक आदि सरस सँवारि सुन्दर चरु लियो |
तुव वेदनी मदहरन लखि, चरचौं चरन शुचिकर हियो||
श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवन वन्द आनन्दकन्द हैं|
दुखदंद फंद निकंद पूरन चन्द जोतिअमंद हैं||
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|
संशय विमोह विभरम तम भंजन दिनन्द समान हो |
तातैं चरनढिग दीप जोऊँ देहु अविचल ज्ञान हो||
श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवन वन्द आनन्दकन्द हैं|
दुखदंद फंद निकंद पूरन चन्द जोतिअमंद हैं||
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|
वर अगर तगर कपूर चूर सुगन्ध भूर बनाइया |
दहि अमर जिह्नाविषैं चरनढिग करम भरम जराइया||
श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवन वन्द आनन्दकन्द हैं |
दुखदंद फंद निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं ||
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|
सुरलोक अरु नरलोक के फल पक्व मधुर सुहावने |
ले भगति सहित जजौं चरन शिव परम पावन पावने||
श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवन वन्द आनन्दकन्द हैं |
दुखदंद फंद निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं ||
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|
जलमलय तंदुल सुमनचरु अरु दीप धूप फलावली |
करि अरघ चरचौं चरन जुग प्रभु मोहि तार उतावली||
श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवन वन्द आनन्दकन्द हैं |
दुखदंद फंद निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं ||
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
पुष्पोत्तर तजि आये, विमलाउर जेठकृष्ण छट्टम को |
सुरनर मंगल गाये, पूजौं मैं नासि कर्म काठनि को ||
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाषष्ठयां गर्भमंगलमंडिताय श्रीश्रेयांस0अर्घ्यं नि0स्वा0 |1|
जनमे फागुनकारी,एकादशि तीन ग्यान दृगधारी|
इक्ष्वाकु वशंतारी,मैं पूजौं घोर विघ्न दुख टारी||
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीश्रेयांस0अर्घ्यं नि0स्वा0 |2|
भव तन भोग असारा,लख त्याग्यो धीर शुद्ध तप धारा|
फागुन वदि इग्यारा,मैं पूजौं पाद अष्ट परकारा||
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यां निःक्रमणमहोत्सवमण्डिताय श्रीश्रेयांस0अर्घ्यं नि0स्वा0 |3|
केवलज्ञान सुजानन,माघ बदी पूर्णतित्थ को देवा|
चतुरानन भवभानन,वंदौं ध्यावौं करौं सुपद सेवा||
ॐ ह्रीं माघकृष्णामावस्यायां केवलज्ञानमंडिताय श्रीश्रेयांस0अर्घ्यं नि0स्वा0 |4|
गिरि समेद तें पायो,शिवथल तिथि पूर्णमासि सावन को|
कुलिशायुध गुनगायो, मैं पूजौं आप निकट आवन को ||
ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लापूर्णिमायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीश्रेयांस0अर्घ्यं नि0स्वा0 |5|
जयमाला
शोभित तुंग शरीर सुजानो,
चाप असी शुभ लक्षण मानो |
कंचन वर्ण अनूपम सोहे,
देखत रुप सुरासुर मोहे |1|
जय जय श्रेयांस जिन गुणगरिष्ठ,
तुम पदजुग दायक इष्टमिष्ट |
जय शिष्ट शिरोमणि जगतपाल,
जय भव सरोजगन प्रातःकाल |2|
जय पंच महाव्रत गज सवार,
लै त्याग भाव दलबल सु लार |
जय धीरज को दलपति बनाय,
सत्ता छितिमहँ रन को मचाय |3|
धरि रतन तीन तिहुँशक्ति हाथ,
दश धरम कवच तपटोप माथ |
जय शुकलध्यान कर खड़ग धार,
ललकारे आठों अरि प्रचार |4|
ता में सबको पति मोह चण्ड,
ता को तत छिन करि सहस खण्ड |
फिर ज्ञान दरस प्रत्यूह हान,
निजगुन गढ़ लीनों अचल थान |5|
शुचि ज्ञान दरस सुख वीर्य सार,
हुई समवशरण रचना अपार |
तित भाषे तत्व अनेक धार,
जा को सुनि भव्य हिये विचार |6|
निजरुप लाह्यो आनन्दकार,
भ्रम दूर करन को अति उदार |
पुनि नयप्रमान निच्छेप सार,
दरसायो करि संशय प्रहार |7|
ता में प्रमान जुगभेद एव,
परतच्छ परोछ रजै स्वमेव |
ता में पतच्छ के भेद दोय,
पहिलो है संविवहार सोय |8|
ता के जुग भेद विराजमान,
मति श्रुति सोहें सुन्दर महान |
है परमारथ दुतियो प्रतच्छ,
हैं भेद जुगम ता माहिं दच्छ |9|
इक एकदेश इक सर्वदेश,
इकदेश उभैविधि सहित वेश |
वर अवधि सु मनपरजय विचार,
है सकलदेश केवल अपार |10|
चर अचर लखत जुगपत प्रतच्छ,
निरद्वन्द रहित परपंच पच्छ |
पुनि है परोच्छमहँ पंच भेद,
समिरति अरु प्रतिभिज्ञान वेद |11|
पुनि तरक और अनुमान मान,
आगमजुत पन अब नय बखान |
नैगम संग्रह व्यौहार गूढ़,
ऋजुसूत्र शब्द अरु अमभिरुढ़ |12|
पुनि एवंभूत सु सप्त एम,
नय कहे जिनेसुर गुन जु तेम |
पुनि दरव क्षेत्र अर काल भाव,
निच्छेप चार विधि इमि जनाव |13|
इनको समस्त भाष्यौ विशेष,
जा समुझत भ्रम नहिं रहत लेश |
निज ज्ञानहेत ये मूलमन्त्र,
तुम भाषे श्री जिनवर सु तन्त्र |14|
इत्यादि तत्त्व उपदेश देय,
हनि शेषकरम निरवान लेय |
गिरवान जजत वसु दरब ईस,
वृन्दावन नितप्रति नमत शीश |15|
घत्ताः- श्रेयांस महेशा सुगुन जिनेशा,
वज्रधरेशा ध्यावतु हैं |
हम निशदिन वन्दें पापनिकंदें,
ज्यों सहजानंद पावतु हैं ||
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |
सोरठाःजो पूजें मन लाय श्रेयनाथ पद पद्म को|
पावें इष्ट अघाय, अनुक्रम सों शिवतिय वरैं ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)