39.श्री विमलनाथ जी जिन पूजा
सहस्रार दिवि त्यागि, नगर कम्पिला जनम लिय |
कृतधर्मानृपनन्द, मातु जयसेना धर्मप्रिय ||
तीन लोक वर नन्द,विमल जिन विमल विमलकर|
थापौं चरन सरोज,जजन के हेतु भाव धर ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |
सोरठाः- कंचन झारी धारि, पदमद्रह को नीर ले |
तृषा रोग निरवारि, विमल विमलगुन पूजिये ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|
मलयागर करपूर देववल्लभा संग घसि |
हरि मिथ्यातमभूर, विमल विमलगुन जजतु हौं ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|
वासमती सुखदास, स्वेत निशपति को हँसै |
पूरे वाँछित आस, विमल विमलगुन जजत ही ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|
पारिजात मंदार, संतानक सुरतरु जनित |
जजौं सुमन भरि थार, विमल विमलगुन मदनहर ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|
नव्य गव्य रसपूर, सुवरण थाल भरायके |
छुधावेदनी चूर, जजौं विमल विमलगुन ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|
माणिक दीप अखण्ड, गो छाई वर गो दशों |
हरो मोहतम चंड, विमल विमलमति के धनी ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|
अगरु तगर घनसार, देवदारु कर चूर वर |
खेवौं वसु अरि जार, विमल विमल पद पद्म ढिग ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|
श्रीफल सेव अनार, मधुर रसीले पावने |
जजौं विमलपद सार, विघ्न हरें शिवफल करें ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|
आठों दरब संवार, मनसुखदायक पावने |
जजौं अरघ भर थार, विमल विमल शिवतिय रमण ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
गरभ जेठ बदी दशमी भनो,
परम पावन सो दिन शोभनो|
करत सेव सची जननीतणी ,
हम जजें पदपद्म शिरौमणी||
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णादशम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं0 |1|
शुकलमाघ तुरी तिथि जानिये,
जनम मंगल तादिन मानिये |
हरि तबै गिरिराज विषै जजे,
हम समर्चत आनन्द को सजे ||
ॐ ह्रीं माघशुक्लाचतुर्थ्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीविमल0 अर्घ्यं नि0 |2|
तप धरे सित माघ तुरी भली,
निज सुधातम ध्यावत हैं रली |
हरि फनेश नरेश जजें तहां,
हम जजें नित आनन्द सों इहां ||
ॐ ह्रीं माघशुक्लाचतुर्थ्यां तपोमंगल प्राप्ताय श्रीविमल0 अर्घ्यं नि0 |3|
विमल माघरसी हनि घातिया,
विमलबोध लयो सब भासिया |
विमल अर्घ चढ़ाय जजौं अबै,
विमल आनन्द देहु हमें सबै ||
ॐ ह्रीं माघशुक्लाषष्ठयां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीविमल0 अर्घ्यं नि0 |4|
भ्रमरसाढ़ छटी अति पावनो ,
विमल सिद्ध भये मन भावनो |
गिरसमेद हरी तित पूजिया,
हम जजैं इत हर्ष धरैं हिया ||
ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णाषष्ठयां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीविमल0 अर्घ्यं नि0 |5|
जयमाला
दोहाः-
गहन चहत उड़गन गगन,छिति तिथि के छहँ जेम|
तुम गुन-वरनन वरननि, माँहि होय तब केम |1
साठ धुनष तन तुंग है, हेम वरन अभिराम |
वर वराह पद अंक लखि,पुनि पुनि करौं प्रनाम |2
जय केवलब्रह्म अनन्तगुनी,
तुम ध्यावत शेष महेश मुनी |
परमातम पूरन पाप हनी,
चितचिंततदायक इष्ट धनी |3
भव आतपध्वंसन इन्दुकरं,
वर सार रसायन शर्मभरं |
सब जन्म जरा मृतु दाहहरं,
शरनागत पालन नाथ वरं |4
नित सन्त तुम्हें इन नामनि तें,
चित चिन्तन हैं गुनगाम नितैं |
अमलं अचलं अटलं अतुलं,
अरलं अछलं अथलं अकुलं |5
अजरं अमरं अहरं अडरं,
अपरं अभरं अशरं अनरं |
अमलीन अछीन अरीन हने,
अमतं अगतं अरतं अघने |6
अछुधा अतृषा अभयातम हो,
अमदा अगदा अवदातम हो |
अविरुद्ध अक्रुद्ध अमानधुना,
अतलं असलं अनअन्त गुना |7
अरसं सरसं अकलं सकलं,
अवचं सवचं अमचं सबलं |
इन आदि अनेक प्रकार सही,
तुमको जिन सन्त जपें नित ही |8
अब मैं तुमरी शरना पकरी,
दुख दूर करो प्रभुजी हमरी |
हम कष्ट सहे भवकानन में,
कुनिगोद तथा थल आनन में |9
तित जानम मर्न सहे जितने,
कहि केम सकें तुम सों तितने |
सुमुहूरत अन्तरमाहिं धरे,
छह त्रै त्रय छः छहकाय खरे |10
छिति वहि वयारिक साधरनं,
लघु थूल विभेदनि सों भरनं |
परतेक वनस्पति ग्यार भये,
छ हजार दुवादश भेद लये |11
सब द्वै त्रय भू षट छः सु भया,
इक इन्द्रिय की परजाय लया |
जुग इन्द्रिय काय असी गहियो,
तिय इन्द्रिय साठनि में रहियो |12
चतुरिंद्रिय चालिस देह धरा,
पनइन्द्रिय के चवबीस वरा |
सब ये तन धार तहाँ सहियो,
दुखघोर चितारित जात हियो |13
अब मो अरदास हिये धरिये,
दुखदंद सबै अब ही हरिये |
मनवांछित कारज सिद्ध करो,
सुखसार सबै घर रिद्ध भरो |14
घत्ताः- जय विमलजिनेशा नुतनाकेशा,
नागेशा नरईश सदा |
भवताप अशेषा, हरन निशेशा,
दाता चिन्तित शर्म सदा |15
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |
दोहाः-श्रीमत विमल जिनेशपद,जो पूजें मनलाय|
पूरें वांछित आश तसु, मैं पूजौं गुनगाय ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)