40.श्री अनंतनाथ जी जिन पूजा

पुष्पोत्तर तजि नगर अजुध्या जनम लियो सूर्या उर आय,

सिंघसेन नृप के नन्दन,आनन्द अशेष भरे जगराय|

गुन अंनत भगवंत धरे,भवदंद हरे तुम हे जिनराय,

थापतु हौं त्रय बार उचरि के,कृपासिन्धु तिष्ठहु इत आय||

ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |

ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |

ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

शुचि नीर निरमल गंग को ले,कनक भृंग भराइया|
मल करम धोवन हेत,मन वच काय धार ढराइया||
जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो|
शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं,भ्रंत वन्त नशावनो ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|

 हरिचन्द कदलीनंद कंकुम, दंद ताप निकंद है |
सब पापरुजसंताप भंजन,आपको लखि चंद है||
जूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो|
शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं,भ्रंत वन्त नशावनो ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|

कनशाल दुति उजियाल हीर,हिमाल गुलकनि तें घनी |
तसु पुंज तुम पदतर धरत,पद लहत स्वछ सुहावनी||
जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो|
शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं,भ्रंत वन्त नशावनो ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|

पुष्कर अमरत जनित वर, अथवा अवर कर लाइया |
तुम चरन-पुष्करतर धरत, सरशूर सकल नशाइया ||ज0
जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो|
शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं,भ्रंत वन्त नशावनो ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|

पकवान नैना घ्रान रसना, को प्रमोद सुदाय हैं |
सो ल्यान चरन चढ़ाय रोग,छुधाय नाश कराय हैं||
जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो|
शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं,भ्रंत वन्त नशावनो ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|

तममोह भानन जानि आनन्द, आनि सरन गही अबै |
वर दीप धारौं वारि तुम ढिग, स्व-पर-ज्ञान जु द्यो सब||
जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो|
शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं,भ्रंत वन्त नशावनो ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|

यह गंध चूरि दशांग सुन्दर, धूम्रध्वज में खेय हौं |

वसुकर्म भर्म जराय तुम ढिग, निज सुधातम वेय हौं ||
जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो|
शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं,भ्रंत वन्त नशावनो ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|

रसथक्व पक्व सुभक्व चक्व, सुहावने मृदु पावने |
फलासार वृन्द अमंद ऐसो,ल्याय पूज रचावने ||
जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो|
शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं,भ्रंत वन्त नशावनो ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|

शुचि नीर चन्दन शालिशंदन,सुमन चरु दीवा धरौं |
अरु धूप फल जुत अरघ करि,करजोरजुग विनति करौं ||
जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो|
शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं,भ्रंत वन्त नशावनो ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|

      पंच कल्याणक अर्घ्यावली
असित कार्तिक एकम भावनो, 
गरभ को दिन सो गिन पावनो |

किय सची तित चर्चन चाव सों , 
हम जजें इत आनंद भाव सों ||

ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णाप्रतिपदायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय

अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |1| 
जनम जेठवदी तिथि द्वादशी, 
सक मंगल लोकविषै लशी |
सहरि जजे गिरिराज समाज तें, 
हम जजैं इत आतम काज तें ||

ॐ ह्रीं जेष्ठकृष्णाद्वादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |2|

भव शरीर विनस्वर भाइयो, 
असित जेठ दुवादशि गाइयो |
सकल इंद्र जजें तित आइके, 
हम जजैं इत मंगल गाइके ||

ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाद्वादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |3|

असित चैत अमावस को सही, 
परम केवलज्ञान जग्यो कही |
लही समोसृत धर्म धुरंधरो, 
हम समर्चत विघ्न सबै हरो ||

ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाअमावस्यायां ज्ञानमंगलमंडिताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |4|

 असित चैत अमावस गाइयो, 
अघत घाति हने शिव पाइयो |
गिरि समेद जजें हरि आय के, 
हम जजें पद प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाअमावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |5|

   जयमाला
दोहाः-

तुम गुण वरनन येम जिम,खंविहाय करमान |
     था मेदिनी पदनिकरि, कीनो चहत प्रमान ||1

     जय अनन्त रवि भव्यमन, जलज वृन्द विहँसाय |
     सुमति कोकतिय थोक सुख,वृद्ध कियो जिनराय ||2

जै अनन्त गुनवंत नमस्ते,शुद्ध ध्येय नित सन्त नमस्ते |
लोकालोक विलोक नमस्ते,चिन्मूरत गुनथोक नमस्ते|3

रत्नत्रयधर धीर नमस्ते, करमशत्रुकरि कीर नमस्ते |
चार अनंत महन्त नमस्ते,जय जय शिवतियकंत नमस्ते|4

पंचाचार विचार नमस्ते,पंच करण मदहार नमस्ते |
पंच पराव्रत-चूर नमस्ते,पंचमगति सुखपूर नमस्ते|5

पंचलब्धि-धरनेश नमस्ते, पंच-भाव-सिद्धेश नमस्ते |
छहों दरब गुनजान नमस्ते,छहों कालपहिचान नमस्ते |6

छहों काय रच्छेश नमस्ते,छह सम्यक उपदेश नमस्त|
सप्तव्यसनवनवह्वि नमस्ते,जय केवल अपरह्वि नमस्ते|7

सप्ततत्त्व गुनभनन नमस्ते,सप्त श्वभ्रगति हनननमस्ते9|
सप्तभंग के ईश नमस्ते, सातों नय कथनीश नमस्ते |8|

अष्टकरम मलदल्ल नमस्ते,अष्टजोग निरशल्ल नमस्ते|
अष्टम धराधिराज नमनमस्तष्ट गुननि सिरताज नमस्नमस्

जय नवकेवल प्राप्त-ननमस्नमस पदार्थथिति आप्त नमस्ते|
दशों धरम धरतार नमस्ते, दशों बंधपरिहार नमस्ते|10

विघ्न महीधर विज्जु नमस्ते,जय ऊरधगति रिज्जु नमस्नमस्तकनकंदुति पूर नमस्तभरक्ष्वाकु वंश कज सूर नमस्ते|11

धनु पचासतन उच्च नमस्ते, कृपासिंधु मृग शुच्च तु अंक निशंक नमस्ते,चितचकोर मृग अंक नमस्ते |12

राग दोषमदटार नमस्ते,निजविचार दुखहार नमस्ते|
सुर-सुरेश-गन-वृन्द नमस्ते,वृन्द करो सुखकंद नमस्ते |13|

जय जय जिनदेवं सुरकृतसेवं,नित कृतचित्त हुल्लासधरं |
आपद उद्धारं समतागारं, वीरराग विज्ञान भरं|14

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथ जिनेन्द्राय महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |

 जो जन मन वच काय लाय, जिन जजे नेह धर,
वा अनुमोदन करे करावे पढ़े पाठ वर |
ताके नित नव होय सुमंगल आनन्द दाई,
अनुक्रम तें निरवान लहे सामग्री पाई ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)