43.श्री अरहनाथ जी जिन पूजा


तप तुरंग असवार धार, तारन विवेक कर |
ध्यान शुकल असिधार शुद्ध सुविचार सुबखतर ||

भावन सेना, धर्म दशों सेनापति थापे |
रतन तीन धरि सकति, मंत्रि अनुभो निरमापे ||

सत्तातल सोहं सुभटि धुनि,त्याग केतु शत अग्र धरि|
इहविध समाज सज राज को,अर जिन जीते कर्म अरि||

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

 कनमनिमय झारी, दृग सुखकारी,
 सुर सरितारी नीर भरी |

मुनिमन सम उज्ज्वल, 
जनम जरादल, सो ले पदतल धार करी ||

प्रभु दीन दयालं, अरिकुल कालं, 
विरद विशालं सुकुमालं |

हरि मम जंजालं, हे जगपालं, 
अरगुन मालं, वरभालं ||

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|

भवताप नशावन, विरद सुपावन, 
सुनि मन भावन, मोद भयो |
तातैं घसि बावन, चंदनपावन, 
तुमहिं चढ़ावन, उमगि अयो ||प्रभु0

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|

तंदुल अनियारे, श्वेत सँवारे, 
शशिदुति टारे, थार भरे |
पद अखय सुदाता, जगविख्याता, 
लखि भवत्राता पुंजधरे ||प्रभु0

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|

 सुरतरु के शोभित, सुरन मनोभित, 
सुमन अछोभित ले आयो |
मनमथ के छेदन, आप अवेदन, 
लखि निरवेदन गुन गायो ||प्रभु0

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|

 नेवज सज भक्षक प्रासुक अक्षक, 
पक्षक रक्षक स्वक्ष धरी |

तुम करम निकक्षक, भस्म कलक्षक, 
दक्षक पक्षक रक्ष करी ||

प्रभु दीन दयालं, अरिकुल कालं, 
विरद विशालं सुकुमालं |

हरि मम जंजालं, हे जगपालं, 
अरगुन मालं, वरभालं ||

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|

 तुम भ्रमतम भंजन मुनिमन कंजन, 
रंजन गंजन मोह निशा

रवि केवलस्वामी दीप जगामी, 
तुम ढिग आमी पुण्य दृशा ||प्रभु0

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|

दशधूप सुरंगी गंध अभंगी वह्वि वरंगी माहिं हवें |

वसुकर्म जरावें धूम उड़ावें,
ताँडव भावें नृत्य पवें ||प्रभु0

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|

रितुफल अतिपावन, नयन सुहावन, 
रसना भावन, कर लीने |

तुम विघन विदारक, शिवफलकारक, 
 भवदधि तारक चरचीने ||प्रभु0

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|

सुचि स्वच्छ पटीरं, गंधगहीरं, 
तंदुलशीरं, पुष्प-चरुं |

वर दीपं धूपं, आनंदरुपं, 
ले फल भूपं, अर्घ करुं ||प्रभु0

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|

पंच कल्याणक अर्घ्यावली

फागुन सुदी तीज सुखदाई, 
गरभ सुमंगल ता दिन पाई |

मित्रादेवी उदर सु आयेजजे
 इन्द्र हम पूजन आये||

ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्ला तृतीयायां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीअर0अर्घ्यं नि0 |1|

 मँगसिर शुक्ल चतुर्दशि सोहे, 
गजपुर जनम भयो जग मोहे |

सुर गुरु जजे मेरु पर जाई, 
हम इत पूजें मनवचकाई ||

ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला चतुर्दश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीअर0अर्घ्यं नि0 |2|

मंगसिर सित दसमी दिन राजे, 
ता दिन संजम धरे विराजै |

अपराजित घर भोजन पाई, 
हम पूजें इत चित हरषाई ||

ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला दशम्यां तपोमंगलप्राप्ताय श्रीअर0अर्घ्यं नि0 |3|

कार्तिक सित द्वादशि अरि चूरे, 
केवलज्ञान भयो गुन पूरे |

समवसरन तिथि धरम बखाने, 
जजत चरन हम पातक भाने ||

ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्ला द्वादश्यां ज्ञानमंगलप्राप्ताय श्रीअर0अर्घ्यं नि0 |4|

चैत कृष्ण अमावसी सब कर्म,
नाशि वास किय शिव-थल पर्म |
निहचल गुन अनंत भंडारी, 
जजौं देव सुधि लेहु हमारी ||

ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाअमावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीअर0अर्घ्यं नि0 |5|

जयमाला
दोहा :-बाहर भीतर के जिते, जाहर अर दुखदाय |

ता हर कर अर जिन भये, साहर शिवपुर राय |1|

राय सुदरशन जासु पितु, मित्रादेवी माय |

हेमवरन तन वरष वर, नव्वै सहस सुआय |2|

जय श्रीधर श्रीकर श्रीपति जी, 
जय श्रीवर श्रीभर श्रीमति जी |

भवभीम भवोदधि तारन हैं, 
अरनाथ नमों सुखकारन हैं |3|

गरभादिक मंगल सार धरे, 
जग जीवनि के दुखदंद हरे |

कुरुवंश शिखामनि तारन हैं, 
अरनाथ नमौं सुखकारन हैं |4|

करि राज छखंड विभूति मई, 
तप धारत केवलबोध ठई |

गण तीस जहाँ भ्रमवारन हैं, 
अरनाथ नमौं सुखकारन हैं |5|

भविजीवन को उपदेश दियो, 
शिवहेत सबै जन धारि लियो |

जग के सब संकट टारन हैं, 
अरनाथ नमौं सुखकारन हैं |6|

कहि बीस प्ररुपन सार तहाँ, 
निजशर्म सुधारस धार जहाँ |

गति चार ह्रषीपन धारन हैं, 
अरनाथ नमौं सुखकारन हैं |7|

षट काय तिजोग तिवेद मथा, 
पनवीस कषा वसु ज्ञान तथा |

सुर संजम भेद पसारन हैं, 
अरनाथ नमौं सुखकारन हैं |8|

रस दर्शन लेश्या भव्य जुगं, 
षट सम्यक् सैनिय भेद युगं |

जुग हारा तथा सु अहारन हैं, 
थ नमौं सुखकारन हैं |9|

गुनथान चतुर्दस मारगना, 
उपयोग दुवादश भेद भना |

इमि बीस विभेद उचारन हैं, 
अरनाथ नमौं सुखकारन हैं |10|

इन आदि समस्त बखान कियो, 
भवि जीवनि ने उर धार लियो |

कितने शिववादिन धारन हैं, 
अरनाथ नमौं सुखकारन हैं |11|

फिर आप अघाति विनाश सबै, 
शिवधाम विषैं थित कीन तबै |

कृतकृत्य प्रभू जगतारन हैं 
अरनाथ नमौं सुखकारन हैं |12|

अब दीनदयाल दया धरिये, 
मम कर्म कलंक सबै हरिये |

तुमरे गुन को कछु पार न है, 
अरनाथ नमौं सुखकारन हैं |13|

जय श्रीअरदेवं, सुरकृतसेवं समताभेवं, दातारं |

अरिकर्म विदारन, शिवसुखकारन, 
जयजिनवर जग त्रातारं ||

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |

अर जिन के पदसारं, जो पूजै द्रव्य भाव सों प्राणी |
सो पावै भवपारं, अजरामर मोक्षथान सुखखानी ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)