45.श्री मुनिसुव्रतनाथ जी जिन पूजा


प्रानत स्वर्ग विहाय लियो जिन,जन्म सु राजगृहीमहँ आई|

श्री सुहमित्त पिता जिनके,गुनवान महापदमा जसु माई||

बीस धनू तनु श्याम छवी,कछु अंक हरी वर वंश बताई|

सो मुनिसुव्रतनाथ प्रभू कहँ थापतु हौं इत प्रीत लगाई||

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

 गीतिकाः- 
उज्ज्वल सुजल जिमि जस तिहांरो,कनक झारीमें भरौं|

जरमरन जामन हरन कारन,धार तुम पदतर करौं||

शिवनाथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनिगुन माल हैं|

तसु चरन आनन्दभरन तारन,तरन, विरद विशाल हैं||

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|

भवतापघायक शान्तिदायक,मलय हरि घसि ढिग धरौं|

गुनगाय शीस नमाय पूजत, विघनताप सबैं हरौं ||

शिवनाथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनिगन माल हैं |

तसु चरन आनन्दभरन तारन तरन, विरद विशाल हैं ||

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|

 तंदुल अखण्डित दमक शशिसम, गमक जुत थारी भरौं |

पद अखयदायक मुकति नायक, जानि पद पूजा करौं ||शिव0

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|

बेला चमेली रायबेली, केतकी करना सरौं |

जगजीत मनमथहरन लखि प्रभु, तुम निकट ढेरी करौं ||शिव0

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|

पकवान विविध मनोज्ञ पावन, सरस मृदुगुन विस्तरौं |

सो लेय तुम पदतर धरत ही छुधा डाइन को हरौं ||शिव0

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|

दीपक अमोलिक रतन मणिमय, तथा पावन घृत भरौं |

सो तिमिर मोहविनाश आतम भास कारण ज्वै धरौं ||शिव0

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|

करपूर चन्दन चूर भूर, सुगन्ध पावक में धरौं |

तसु जरत जरत समस्त पातक, सार निज सुख को भरौं ||शिव0

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|

श्रीफल अनार सु आम आदिक पक्वफल अति विस्तरौं |

सो मोक्ष फल के हेत लेकर, तुम चरण आगे धरौं ||शिव0

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|

 जलगंध आदि मिलाय आठों दरब अरघ सजौं वरौं |

पूजौं चरन रज भगतिजुत, जातें जगत सागर तरौं ||

शिवसाथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनिगुन माल हैं |

तसु चरन आनन्दभरन तारन तरन, विरद विशाल हैं ||

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|

पंच कल्याणक अर्घ्यावली

तिथि दोयज सावन श्याम भयो, 
गरभागम मंगल मोद थयो |

हरिवृन्द सची पितु मातु जजें, 
हम पूजत ज्यौं अघ ओघ भजें ||

ॐ ह्रीं श्रावणकृष्णा द्वितीयायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीमुनि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |1| 

बैसाख बदी दशमी वरनी, 
जनमे तिहिं द्योस त्रिलोकधनी |

सुरमन्दिर ध्याय पुरन्दर ने,
मुनिसुव्रतनाथ हमैं सरनै ||

ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णा दशम्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीमुनि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |2|

तप दुद्धर श्रीधर ने गहियो, 
वैशाख बदी दशमी कहियो |

निरुपाधि समाधि सुध्यावत हैं,
हम पूजत भक्ति बढ़ावत हैं ||

ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णा दशम्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीमुनि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |3|

वर केवलज्ञान उद्योत किया,
 नवमी वैसाख वदी सुखिया |

धनि मोहनिशाभनि मोखमगा,
 हम पूजि चहैं भवसिन्धु थगा ||

ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णानवम्यां केवलज्ञानमंडिताय श्रीमुनि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |4|

वदि बारसि फागुन मोच्छ गये, 
तिहुं लोक शिरोमणी सिद्ध भये |

सु अनन्त गुनाकर विघ्न हरी,
 हम पूजत हैं मनमोद भरी ||

ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा द्वादश्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीमुनि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |5|

  जयमाला
दोहाः-

 मुनिगण नायक मुक्तिपति, सूक्त व्रताकर युक्त |
भुक्ति मुक्ति दातार लखि, वन्दौं तन-मन युक्त |1
 
जय केवल भान अमान धरं, 
मुनि स्वच्छ सरोज विकास करं |
भव संकट भंजन लायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |2|

घनघात वनं दवदीप्त भनं, 
भविबोध त्रषातुर मेघघनं |
नित मंगलवृन्द वधायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |3

गरभादिक मंगलसार धरे, 
जगजीवन के दुखदंद हरे |
सब तत्व प्रकाशन नायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |4

शिवमारग मण्डन तत्व कह्यो, 
गुनसार जगत्रय शर्म लह्यो |
रुज रागरू दोष मिटायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |5|

समवस्रत में सुरनार सही, 
गुनगावत नावत भाल मही |
अरु नाचत भक्ति बढ़ायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |6|

पग नूपुर की धुनि होत भनं, 
झननं झननं झननं झननं |
सुरलेत अनेक रमायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |7|

घननं घननं घन घंट बजें, 
तननं तननं तनतान सजें |
दृमदृम मिरदंग बजायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |8|

छिन में लघु औ छिन थूल बनें, 
जुत हावविभाव विलासपने |
मुखतें पुनि यों गुनगायक हैं,
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |9|

धृगतां धृगतां पग पावत हैं, 
सननं सननं सु नचावत हैं |
अति आनन्द को पुनि पायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |10|

अपने भव को फल लेत सही, 
शुभ भावनि तें सब पाप दही |
तित तैं सुख को सब पायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |11|

इन आदि समाज अनेक तहां, 
कहि कौन सके जु विभेद यहाँ |
धनि श्री जिनचन्द सुधायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |12|

पुनि देश विहार कियो जिन ने, 
वृष अमृतवृष्टि कियो तुमने |
हमको तुमरी शरनायक है, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |13|

हम पै करुनाकरि देव अबै, 
शिवराज समाज सु देहु सबै |
जिमि होहुं सुखाश्रम नायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |14|

भवि वृन्दतनी विनती जु यही, 
मुझ देहु अभयपद राज सही |
हम आनि गही शरनायक हैं, 
मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं |15|

घत्ताः- जय गुनगनधारी, शिवहितकारी,
 शुद्धबुद्ध चिद्रुप पती |
परमानंददायक, दास सहायक, 
मुनिसुव्रत जयवंत जती |16|

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |

दोहाः- श्रीमुनिसुव्रत के चरन, जो पूजें अभिनन्द |
सो सुरनर सुख भोगि के, पावें सहजानन्द ||
 इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)