46.श्री नमिनाथ जी जिन पूजा


श्री नमिनाथ जिनेन्द्र नमौं विजयारथ नन्दन |
विख्यादेवी मातु सहज सब पाप निकन्दन ||
अपराजित तजि जये मिथिलापुर वर आनन्दन |
तिन्हें सु थापौं यहाँ त्रिधा करि के पदवन्दन ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

सुरनदी जल उज्ज्वल पावनं, 
कनक भृंग भरौं मन भावनं |
जजतु हौं नमि के गुण गाय के, 
जुगपदांबुज प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|

 हरिमलय मिलि केशर सों घसौं, 
जगतनाथ भवातप को नसौं |
जजतु हौं नमि के गुण गाय के, 
जुगपदाम्बुज प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|

 गुलक के सम सुन्दर तंदुलं, 
धरत पुञ्जसु भुंजत संकुलं |
जजतु हौं नमि के गुण गाय के, 
जुगपदाम्बुज प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|

कमल केतुकी बेलि सुहावनी, 
समरसूल समस्त नशावनी |
जजतु हौं नमि के गुण गाय के, 
जुगपदाम्बुज प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|

शशि सुधासम मोदक मोदनं, 
प्रबल दुष्ट छुधामद खोदनं |
जजतु हौं नमि के गुण गाय के, 
जुगपदाम्बुज प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|

शुचि घृताश्रित दीपक जोइया, 
असम मोह महातम खोइया |
जजतु हौं नमि के गुण गाय के,
 जुगपदाम्बुज प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|

अमरजिह्व विषें दशगंध को, 
दहत दाहत कर्म के बंधको |
जजतु हौं नमि के गुण गाय के, 
जुगपदाम्बुज प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|

फलसुपक्व मनोहर पावने, 
सकल विघ्न समुह नशावने |
जजतु हौं नमि के गुण गाय के,
 जुगपदाम्बुज प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|

जल फलादि मिलाय मनोहरं, 
अरघ धारत ही भवभय हरं |
जजतु हौं नमि के गुण गाय के, 
जुगपदाम्बुज प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|
  पंच कल्याणक अर्घ्यावली
गरभागम मंगलचारा, जुग आश्विन श्याम उदारा |
हरि हर्षि जजे पितुमाता, हम पूजें त्रिभुवन-त्राता ||

ॐ ह्रीं आश्विनकृष्णा द्वितीयां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीनमि0 अर्घ्यं नि0स्वाहा |1|

जनमोत्सव श्याम असाढ़ा,दशमी दिन आननलाय
हरि मन्दर पूजे जाई, हम पूजें मन वच काई ||

ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णा दशम्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीनमि0 अर्घ्यं नि0स्वाहा |2|

तप दुद्धर श्रीधर धारा, दशमी कलि षाढ़ उदारा |
निज आतम रस झर लायो,हम पूजत आनन्द पायो ||

ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णा दशम्यां तपोमंगलप्राप्ताय श्रीनमि0 अर्घ्यं नि0स्वाहा |3|

सित मंगसिर ग्यारस चूरे, चव घाति भये गुण पूरे |
समवस्रत केवलधारी, तुमको नित नौति हमारी ||

ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लैकादश्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीनमि0 अर्घ्यं नि0स्वाहा |4|

वैसाख चतुर्दशि श्यामा, हनि शेष वरी शिव वामा |
सम्मेद थकी भगवन्ता, हम पूजें सुगुन अनन्ता ||

ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णा चतुर्दश्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीनमि0 अर्घ्यं नि0स्वाहा |5|

  जयमाला  दोहाः-
 आयु सहस दश वर्ष की, हेम वरन तनसार |
धनुष पंचदश तुंग तनु, महिमा अपरम्पार |1|

जय जय जय नमिनाथ कृपाला, 
अरिकुल गहन दहन दवज्वाला |
जय जय धरम पयोधर धीरा, 
जय भव भंजन गुन गम्भीरा |2|

जय जय परमानन्द गुनधारी,
 विश्व विलोकन जनहितकारी |
अशरन शरन उदार जिनेशा, 
जय जय समवशरन आवेशा |3|

जय जय केवल ज्ञान प्रकाशी, 
जय चतुरानन हनि भवफांसी |
जय त्रिभुवनहित उद्यम वंता,
 जय जय जय जय नमि भगवंता |4|

जै तुम सप्त तत्व दरशायो, 
तास सुनत भवि निज रस पायो |
एक शुद्ध अनुभव निज भाखे, 
दो विधि राग दोष छै आखे |5|

दो श्रेणी दो नय दो धर्मं,
 दो प्रमाण आगमगुन शर्मं |
तीनलोक त्रयजोग तिकालं, 
सल्ल पल्ल त्रय वात वलायं |6|

चार बन्ध संज्ञागति ध्यानं, 
आराधन निछेप चउ दानं |
पंचलब्धि पंचभाव शिव भौनें, 
छहों दरब सम्यक अनुकौने |

हानिवृद्धि तप समय समेता, 
सप्तभंग वानी के नेता |8|

संयम समुद् घात भय सारा, 
आथ करम मद सिध गुन धारा |
नवों लबधि नवतत्व प्रकाशे, 
नोकषाय हरि तूप हुलाशे |9|

दशों बन्ध के मूल नशाये, 
यों इन आदि सकल दरशाये |
फेर विहरि जगजन उद्धारे, 
जय जय ज्ञान दरश अविकारे |10|

जय वीरज जय सूक्षमवन्ता, 
जय अवगाहन गुण वरनंता |
जय जय अगुरुलघू निरबाधा, 
इन गुनजुत तुम शिवसुख साधा |11|

ता कों कहत थके गनधारी, 
तौ को समरथ कहे प्रचारी |
ता तैं मैं अब शरने आया, 
भवदुख मेटि देहु शिवराया |12|

बार बार यह अरज हमारी, 
हे त्रिपुरारी हे शिवकारी ||
पर-परणति को वेगि मिटावो , 
सहजानन्द स्वरुप भिटावो |13|

वृन्दावन जांचत शिरनाई, 
तुम मम उर निवसो जिनराई |
जब लों शिव नहिं पावौं सारा, 
तब लों यही मनोरथ म्हारा |14|

 जय जय नमिनाथं हो शिवसाथं, 
औ अनाथ के नाथ सदम |
ता तें शिर नायौ, भगति बढ़ायो, 
चीह्न चिह्न शत पत्र पदम |15|

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |

 दोहाः- 
श्री नमिनाथ तने जुगल, चरन जजें जो जीव |
  सो सुर नर सुख भोगकर, होवें शिवतिय पीव ||
            इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)