47.श्री नेमिनाथ जी जिन पूजा


जैतिजै जैतिजै जैतिजै नेमकी, 
धर्म औतार दातार श्यौचैनकी |
श्री शिवानंद भौफंद निकन्द, 
ध्यावें जिन्हें इन्द्र नागेन्द्र ओ मैनकी ||

परमकल्यान के देनहारे तुम्हीं, 
 तातें करौं एनकी |
थापि हौं वार त्रै शुद्ध उच्चार के, 
शुद्धताधार भवपार कूं लेन की ||

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

दाता मोक्ष के,श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता0 ||टेक ||
गंग नदी कुश प्राशुक लीनो, कंचन भृंग भराय |

मन वच तन तें धार देत ही,सकल कलंक नशाय ||
दाता मोक्ष के, श्रीनेमिनाथ जिनराय || दाता0

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|

हरिचन्दनजुत कदलीनन्दन, कुंकुम संग घिसाय |
विघन ताप नाशन के कारन,जजौं तिहांरे पाय ||दाता0

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|

 
पुण्यराशि तुमजस सम उज्ज्वल, तंदुल शुद्ध मंगाय |
अखय सौख्य भोगन के कारन, पुंज धरौं गुन गाय ||दाता0

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|
 
पुण्डरीक सुरद्रुम करनादिक, सुगम सुगंधित लाय |
दर्प्पक मनमथ भंजनकारन, जजहुं चरन लवलाय ||
दाता मोक्ष के, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता0 ||

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|
 
घेवर बावर खाजे साजे, ताजे तुरत मँगाय |
क्षुधा-वेदनी नाश करन को, जजहुँ चरन उमगाय ||दाता0

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|

कनक दीप नवनीत पूरकर, उज्ज्वल जोति जगाय |
तिमिर मोह नाशक तुम को लखि, जजहुँ चरन हुलसाय ||दाता0

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6

दशविध गंध मँगाय मनोहर, गुंजत अलिगन आय |
दशों बंध जारन के कारन, खेवौं तुम ढिंग लाय ||दाता0

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|

सुरस वरन रसना मन भावन, पावन फल सु मंगाय |
मोक्ष महाफल कारन पूजौं, हे जिनवर तुम पाय ||दाता0

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|

जल फल आदि साज शुचि लीने, आठों दरब मिलाय |
अष्टम छिति के राज कारन को, जजौं अंग वसु नाय ||दाता0

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|

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   पंच कल्याणक अर्घ्यावली
सित कातिक छट्ठ अमंदा, गरभागम आनन्दकन्दा |
शचि सेय शिवापद आई, ह पूजत मनवचकाई ||

ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्लाषष्ठ्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीनेमि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |1|
 
सित सावन छट्ठ अमन्दा, जनमे त्रिभुवन के चन्दा |
पितु समुन्द्र महासुख पायो,हम पूजत विघन नशायो ||

ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लाषष्ठ्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीनेमि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |2|
 
तजि राजमती व्रत लीनो,सित सावन छट्ठ प्रवीनो |
शिवनारि तबै हरषाई, हम पूजैं पद शिर नाई |

ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लाषष्ठ्यां तपोमंगलप्राप्ताय श्रीनेमि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |3|
 

सित आश्विन एकम चूरे, चारों घाती अति कूरे |
लहि केवल महिमा सारा,हम पूजैं अष्ट प्रकारा ||

ॐ ह्रीं आश्विनशुक्लाप्रतिपदायां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीनेमि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |4|
 
सितषाढ़ सप्तमी चूरे, चारों अघातिया कूरे |
शिव ऊर्जयन्त तें पाई, हम पूजैं ध्यान लगाई ||

ॐ ह्रीं आषाढ़शुक्लासप्तम्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीनेमि0अर्घ्यं नि0स्वाहा |5|
 
       जयमाला :-दोहाः
 श्याम छवी तनु चाप दश, उन्नत गुननिधिधाम |
शंख चिह्न पद में निखरि, पुनि-पुनि करौं प्रनाम |1|
 
जै जै जै नेमि जिनिंद चन्द, 
पितु समुद देन आनन्दकन्द |
शिवमात कुमुदमन मोददाय, 
भविवृन्द चकोर सुखी कराय |2|

जयदेव अपूरव मारतंड,
 तुम कीन ब्रह्मसुत सहस खंड |
शिवतिय मुखजलज विकाशनेश, 
नहिं रह्यो सृष्टि में तम अशेष |3|

भवभीत कोक कीनों अशोक, 
शिवमग दरशायो शर्म थोक |
जै जै जै जै तुम गुनगँभीर, 
तुम आगम निपुन पुनीत धीर |4|

तुम केवल जोति विराजमान, 
जै जै जै जै करुना निधान |
तुम समवसरन में तत्वभेद, 
दरशायो जा तें नशत खेद |5|

तित तुमको हरि आनंदधार, 
पूजत भगतीजुत बहु प्रकार |
पुनि गद्यपद्यमय सुजस गाय, 
जै बल अनंत गुनवंतराय |6|

जय शिवशंकर ब्रह्मा महेश, 
जय बुद्ध विधाता विष्णुवेष |
जय कुमतिमतंगन को मृगेंद, 
जय मदनध्वांत को रवि जिनेंद्र |7|

जय कृपासिंधु अविरुद्ध बुद्ध, 

 रिद्धिसिद्धि दाता प्रबुद्ध |
जय जगजन मनरंजन महान, 
जय भवसागर महं सुष्टुयान |8|

तुव भगति करें ते धन्य जीव, 
ते पावैं दिव शिवपद सदीव |
तुमरो गुनदेव विविध प्रकार, 
गावत नित किन्नर की जु नार |9|

वर भगति माहिं लवलीन होय,
 नाचें ताथेई थेई थेई बहोय |
तुम करुणासागर सृष्टिपाल, 
अब मों को वेगि करो निहाल |10|

मैं दुख अनंत वसुकरमजोग, 
भोगे सदीव नहिं और रोग |
तुम को जग में जान्यो दयाल, 
हो वीतराग गुन रतन माल |11|

ता तें शरना अब गही आय, 
प्रभु करो वेगि मेरी सहाय |
यह विघनकरम मम खंड खंड, 
मनवांछित कारज मंडमंड |12|

संसार कष्ट चकचूर चूर, 
सहजानन्द मम उर पूर पूर |
निजपर प्रकाशबुधि देई, 
तजि के विलंब सुधि लेइ लेई |13|

हम याचतु हैं बार बार, 
भवसागर तें मो तार तार |
नहिं सह्यो जात यह जगत दुःख, 
तातैं विनवौं हे सुगुनमुक्ख |14|
 
घत्तानंदः- 
श्रीनेमिकुमारं जितमदमारं, शीलागारं सुखकारं |
भवभयहरतारं, शिवकरतारं, दातारं धर्माधारं |15|

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |
 
सुख धन जस सिद्धि पुत्र पौत्रादि वृद्धी |
सकल मनसि सिद्धि होतु है ताहि रिद्धि ||
जजत हरषधारी नेमि को जो अगारी |
अनुक्रम अरिजारी सो वरे मोक्षनारी ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)