54. विद्यमान 20 तीर्थंकर पूजा

दीप अढ़ाई मेरु पन, अरु तीर्थंकर बीस |
तिन सबकी पूजा करुं, मन-वच-तन धरि शीस ||

ॐ ह्रीं विद्यमान विंशति-तीर्थकराः! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |

ॐ ह्रीं विद्यमान विंशति-तीर्थकराः! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |

ॐ ह्रीं विद्यमान विंशति-तीर्थकराः! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

इन्द्र फणीन्द्र नरेन्द्र वंद्य, पद निर्मल धारी,
शोभनीक संसार, सारगुण हैं अविकारी |
क्षीरोदधि सम नीर सों (हो), पूजौं तृषा निवार,
सीमंधर जिन आदि दे, बीस विदेह मंझार |
श्री जिनराज हो, भव तारण जहाज श्री महाराज हो |

ॐ ह्रीं विद्यमान विंशति-तीर्थंकरेभ्यः जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनायजलं निर्वपामीति स्वाहा |1|

तीन लोक के जीव, पाप आताप सताये,
तिनको साता दाता, शीतल वचन सुहाये |
बावन चंदन सों जजूं, (हो) भ्रमन-तपन निरवार, सीमंधर0

ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः भवतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा   |2|

यह संसार अपार महासागर जिनस्वामी,
तातैं तारे बड़ी, भक्ति-नौका जग नामी |
तन्दुल अमल सुगंध सों (हो) पूजौं तुम गुणसार, सीमंधर0

ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा   |3|

बविक-सरोज-विकास, निंद्य-तम-हर रवि से हो,
जाति-श्रावक-अचार कथन को तुम ही बड़े हो |
फूल सुवास अनेक सों (हो) पूजौं मदन प्रहार,
सीमंधर जिन आदि दे, बीस विदेह मँझार |
श्री जिनराज हो, भव तारण तरण जहाज ||

ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा   |4|

काम नाग विषधाम, नाशको गरुड़ कहे हो,
क्षुधा महादव-ज्वाल, तासको मेघ लहे हो |
नेवज बहुघृत मिष्ट सों (हो), पूजौं भूख विडार, सीमंधर0

ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा   |5|

उद्यम होन न देत, सर्व जग मांहिं भर्यो है,
मोह महातम घोर, नाश परकाश कर्यो है |
पूजौं दीप प्रकाश सों (हो) ज्ञान ज्योति करतार, सीमंधर0

ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा   |6|

कर्म आठ सब काट, भार विस्तार निहारा,
ध्यान अग्नि कर प्रकट सरब कीनो निरवारा |
धूप अनूपम खेवतें (हो) दुःख जलै निरधार, सीमंधर0

ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः अष्टकर्म विध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा   |7|

मिथ्यावादी दुष्ट लोभऽहंकारी भरे हैं |
सब को छिन में जीत, जैन के मेरु खरे हैं |
फल अति उत्तम सों जजौं (हो) वांछित फलदार, सीमंधर0

ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा   |8|

जल फल आठों द्रव्य, अरघ कर प्रीति धरी है,
गणधर इन्द्रनहू तैं थुति पूरी न करी है |
द्यानत सेवक जानके (हो) जगतैं लेहु निकार, सीमंधर0

ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यंनिर्वपामीति स्वाहा   |9|

जयमाला
सोरठा
 
ज्ञान सुधाकर चंद, भविक खेतहित मेघ हो |
भ्रम-तम-भान अमंद, तीर्थंकर बीसों नमौं ||

चौपाई 
सीमंधर सीमंधर स्वामी, जुगमंधर जुगमंदिर नामी |
बाहु बाहु जिन जग जन तारे, करम सुबाहु बाहुबल धारे |1|

जातु संजातं केवलज्ञानं, स्वयंप्रभ प्रभु स्वयं प्रधानं |
ऋषभानन ऋषि भानन तोषं, अनंतवीरज वीरजकोषं |2|

सौरीप्रभ सौरीगुणमालं, सुगुण विशाल विशाल दयालं |
व्रजधार भवगिरि वज्जर हैं, चंद्रानन चंद्रानन-वर हैं |3|

भद्रबाहु भद्रनि के करता, श्रीभुजंग भुजंगम हरता |
ईश्वर सब के ईश्वर छाजैं, नेमिप्रभ जस नेमि विराजैं |4|

वीर सेन वीरं जग जाने, महाभद्र महा भद्र बखाने |
नमौं जसोधर जसधरकारी, नमौं अजितवीरज बलधारी |5|

धनुष पांचसौ काय विराजै, आयु कोडि पूरब सब छाजै |
समवशरण शोभित जिनराजा, भव-जल-तारनतरन जिहाजा |6|

सम्यकरत्नत्रय निधिदानी, लोकालोकप्रकाशक ज्ञानी |
शतइन्द्रनिकर वंदित सोहैं, सुन नर पशु सबके मन मोहैं |7|

दोहा - तुमको पूजैं, वंदना, करैं, धन्य नर सोय |
द्यानत सरघा मन धरै, सो भी धरमी होय ||

ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |