55 - 24 तीर्थंकर पूजा(वृषभ अजित संभव)
वृषभ अजित संभव अभिनंदन सुमति पदम सुपार्स जिनराय,
चन्द पुहुप शीतल श्रेयांस नमि वासु पूज पूजित सुर राय.
विमल अनंत धरम जस उज्जवल शांति कुंथु अर मल्लि मनाय,
मुनि सुव्रत नमि नेमि पार्श्व प्रभु वर्धमान पद पुष्प चढ़ाय.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरांत चतु-र्विशति जिन समूह अत्र अवतर अवतर संवौषट;
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरांत चतु-र्विशति जिन समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:;
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरांत चतु-र्विशति जिन समूह अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट.
मुनिमन सम उज्जवल नीर प्रासुक गंध भरा,
भरि कनक कटोरी धीर दीनी धार धरा.
चौबीसौं श्री जिन चन्द आनन्द कन्द सही,
पद जजत हरत भव फन्द पावत मोक्ष मही.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरां-तेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाश-नाय जलं निर्वपामिति स्वाहा.
गोशीर कपूर मिलाय केसर रंग भरी,
जिन चरनन देत चढ़ाय भव आताप हरी.
चौबीसौं श्री जिन चन्द आनन्द कन्द सही,
पद जजत हरत भव फन्द पावत मोक्ष मही.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरां-तेभ्यो भव ताप विनाश-नाय चन्दन निर्वपामिति स्वाहा.
तंदुल सित सोम समान सुन्दर अनियारे,
मुकता फल की उनमान पुन्ज धरौं प्यारे.
चौबीसौं श्री जिन चन्द आनन्द कन्द सही,
पद जजत हरत भव फन्द पावत मोक्ष मही.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरां-तेभ्यो अक्षय पद प्राप-ताय अक्षतान निर्वपामिति स्वाहा.
वरकंज कदंब कुरंड सुमन सुगंध भरे,
जिन अग्र धरौं गुण मंद काम कलंक हरे.
चौबीसौं श्री जिन चन्द आनन्द कन्द सही,
पद जजत हरत भव फन्द पावत मोक्ष मही.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरां-तेभ्यो काम बाण विध्वं-सनाय पुष्पं निर्वपामिति स्वाहा.
मन मोदन मोदक आदि सुन्दर सध्य बने,
रस पूरित प्रासुक स्वाद जजत क्षुधादि हने.
चौबीसौं श्री जिन चन्द आनन्द कन्द सही,
पद जजत हरत भव फन्द पावत मोक्ष मही.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरां-तेभ्यो क्षुधा रोग विनाश नाय नैवेद्यं निर्वपामिति स्वाहा.
तम खंडन दीप जगाय धारों तुम आगे,
सब तिमिर मोह क्षय जाय ज्ञान कला जागे.
चौबीसौं श्री जिन चन्द आनन्द कन्द सही,
पद जजत हरत भव फन्द पावत मोक्ष मही.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरां-तेभ्यो मोहान्धकार विनाश-नाय दीपं निर्वपामिति स्वाहा.
दश गंध हुताशन मांहि हे प्रभु खेवत हों,
मिस धूम करम जरि जांहि तुम पद सेवत हों.
चौबीसौं श्री जिन चन्द आनन्द कन्द सही,
पद जजत हरत भव फन्द पावत मोक्ष मही.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरां-तेभ्यो अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामिति स्वाहा.
शुचि पक्व सरस फल सार सब ऋतु के ल्यायो,
देखत दृग मन को प्यार पूजत सुख पायो.
चौबीसौं श्री जिन चन्द आनन्द कन्द सही,
पद जजत हरत भव फन्द पावत मोक्ष मही.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरां-तेभ्यो मोक्ष फल प्रापताय निर्वपामिति स्वाहा.
जल फल आठों शुचि सार ताको अर्घ करों,
तुमको अरपों भव तार भव तरि मोक्ष वरों.
चौबीसौं श्री जिन चन्द आनन्द कन्द सही,
पद जजत हरत भव फन्द पावत मोक्ष मही.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरांत चतुर्विशति तीर्थं-करेभ्यो अनर्घ पद प्राप-ताय अर्घं निर्वपामिति स्वाहा.
जयमाला
श्री मत तीरथ नाथ पद माथ नाय हितहेत,
गाऊं गुण माला अबै अजर अमर पद देत.
जय भव तम भंजन जन मन कंजन ,
रंजन दिन मनि स्वच्छ करा,
शिव मग परकाशक अरि-गण नाशक चौबीसौं जिन राज वरा .
जय रिषभ देव ऋषि गन नमंत,
जय अजित जीत वसु अरि तुरंत.
जय संभव भव भय करत चूर,
जय अभिनंदन आनंद पूर.
जय सुमति सुमति दायक दयाल,
जय पदम पदम दुति तन रसाल.
जय जय सुपास भव-पास नाश,
जय चंद चंद तन-दुति प्रकाश.
जय पुष्प-दंत दुति-दंत सेत,
जय शीतल शीतल गुन निकेत.
जय श्रेय नाथ नुत सहस भुज्ज,
जय वासव पूजित वासु पुज्ज.
जय विमल विमल पद देन हार,
जय जय अनंत गुन गन अपार.
जय धर्म धर्म शिव शर्म देत,
जय शांति शांति पुष्टी करेत.
जय कुंथु कुंथु वादिक रखेय,
जय अर जिन वसु अरि छय करेय.
जय मल्लि मल्ल हत मोह मल्ल,
जय मुनि सुव्रत व्रत शल्ल दल्ल.
जय नमि नित वासव-नुत सपेम,
जय नेमी नाथ व्रष-चक्र-नेम.
जय पारस नाथ अनाथ नाथ,
जय वर्धमान शिव नगर साथ.
चौबीस जिनंदा आनंद कंदा,पाप निकंदा सुख कारी;
तिन-पद जुग-चंदा उदय अमंदा,वासव वंदा हित धारी.
ॐ ह्रीं श्री वृष-भादि वीरांत चतु-र्विशति जिने-भ्यो महार्घ्य निर्वपामिति स्वाहा.
सोरठा
भुक्ति मुक्ति दातार, चौबीसौं जिन-राज-वर;
तिन-पद मन-वच-धार, जो पूजै सो शिव लहै