63. विसर्जन (बिन जाने या जान के, रही...)

बिन जाने या जान के, रही टूट जो कोय |
तुम प्रसाद से परम गुरु, सो सब पूरन होय ||

पूजन विधि जानूँ नहीं, नहिं जानूँ आह्वान |
और विसर्जन भी नहीं, क्षमा करो भगवान् ||

मंत्र-हीन धन-हीन हूँ, क्रिया-हीन जिनदेव |
क्षमा करहु राखहु मुझे, देहु चरण की सेव ||

श्रद्धा से आराध्य पद पूजे भक्ति प्रमाण |
पूजा विसर्जन मैं करूँ,सदा करो कल्याण ||
(इसके पश्चात् खड़े होकर आरती करें