12. वासुपूज्य चालीसा

वासुपूज्य महाराज का चालीसा सुखकार ।
विनय प्रेम से बॉचिये करके ध्यान विचार ।

जय श्री वासु पूज्य सुखकारी, 
दीन दयाल बाल ब्रह्मचारी ।
अदभुत चम्पापुर राजधानी, 
धर्मी न्यायी ज्ञानी दानी ।1

वसू पूज्य यहाँ के राजा,
 करते राज काज निष्काजा ।
आपस मेँ सब प्रेम बढाने, 
बारह शुद्ध भावना भाते ।2

गऊ शेर आपस ने मिलते,
 तीनों मौसम सुख मेँ कटते ।
सब्जी फल घी दूध हों घर घर, 
आते जाते मुनी निरन्तर ।3

वस्तु समय पर होती सारी, 
जहाँ न हों चोरी बीमारी ।
जिन मन्दिर पर ध्वजा फहरायें, 
घन्टे घरनावल झन्नायेँ ।4

शोभित अतिशय मई प्रतिमाये, 
मन वैराग्य देरव छा जायेँ ।
पूजन, दर्शन नव्हन कराये, 
करें आरती दीप जलायें ।5

राग रागनी गायन गायें, 
तरह तरह के साज बजायें ।
कोई अलौकिक नृत्य दिखाये, 
श्रावक भक्ति में भर जायें ।6

होती निशदिन शास्त्र सभायें, 
पद्मासन करते स्वाध्यायेँ ।
विषय कषायेँ पाप नसायें, 
संयम नियम विवेक सुहाये ।7

रागद्वेष अभिमान नशाते,
 गृहस्थी त्यागी धर्मं निभाते ।
मिटें परिग्रह सब तृष्णये, 
अनेकान्त दश धर्म रमायें ।8

छठ अषाढ़ बदी उर -आये,
 विजया रानी भाग्य जगाये ।
सुन रानी से सोलह सुपने, 
राजा मन में लगे हरषने ।9

तीर्थंकर लें जन्म तुम्हारे, 
होंगे अब उद्धार हमारे ।
तीनो बक्त नित रत्न बरसते,
 विजया मॉ के आँगन भरते ।10

साढे दस करोड़ थी गिनती, 
परजा अपनी झोली भरती ।
फागुन चौदस बदि जन्माये,
सुरपति अदभुत जिन गुण गाये ।11

मति श्रुत अवधि ज्ञान भंडारी,
चालिस गुण सब अतिशय धारी ।
नाटक ताण्डव नृत्य दिखाये,
 नव भव प्रभुजी के दरशाये ।12

पाण्डु शिला पर नव्हन करायें, 
वन्त्रभूषन वदन सजाये ।13

सब जग उत्सव हर्ष मनायें, 
नारी नर सुर झूला झुलायेँ ।
बीते सुख में दिन बचपन के,
 हुए अठारह लारव वर्ष के ।14

आप बारहवें हो तीर्थकर, 
भैसा चिंह आपका जिनवर ।
धनुष पचास बदन केशरिया, 
निस्पृह पर उपकार करइया ।15

दर्शन पूजा जप तप करते, 
आत्म चिन्तवन में नित रमते ।
गुर- मुनियों का आदर कते, 
पाप विषय भोगों से बचते ।16

शादी अपनी नहीं कराई, 
हारे नान मात समझाई ।
मात पिता राज तज दीने,
 दीक्षा ले दुद्धर तप कीने ।17

माघ सुदी दोयज दिन आया, 
कैवलज्ञान आपने पाया ।
समोशरण सुर रचे जहाँ पर, 
छासठ उसमें रहते गणधर ।18

वासु पूज्य की खिरती वाणी, 
जिसको गणघरवों ने जानी ।
मुख से उनके वो निकली थी, 
सब जीवों ने वह समझी थी ।19

आपा आप आप प्रगटाया, 
निज गुण ज्ञान भान चमकाया ।
सब भूलों को राह दिखाई, 
रत्नत्रय की जोत जलाई ।20

आत्म गुण अनुभव करवाया, 
‘सुमत’ जैनमत जग फैलाया ।
सुदी भादवा चौदस आई, 
चम्पा नगरी मुक्ती पाई ।21

आयु बहत्तर लारव वर्ष की, 
बीती सारी हर्ष धर्म की ।
और चोरानवें थे श्री मुनिवर, 
पहुँच गये वो भी सब शिवपुर ।22

तभी वहाँ इन्दर सुर आये, 
उत्सव मिल निर्वाण मनाये ।
देह उडी कर्पुर समाना, 
मधुर सुगन्धी फैला नाना ।23

फैलाई रत्नों को माला, 
चारों दिशा चमके उजियाला ।
कहै ‘सुमत’ क्या गुण जिन राई, 
तुम पर्वत हो मैं हूँ राई ।24

जब ही भक्ती भाव हुआ है,
 चम्पापुर का ध्यान किया हैं ।
लगी आश मै भी कभी जाऊँ,
 वासु पूज्य के दर्शन पाऊँ ।25

सोरठा
खेये धूप सुगन्ध, वासु पूज्य प्रभु ध्यान के ।
कर्म भार सब तार, रूप स्वरूप निहार के ।

मति जो मन में होय, रहें वैसी हो गति आय के ।
करो सुमत रसपान, सरल निज्जात्तम पाय के ।