64.रत्नत्रय पूजा(चहुँगति-फनी-विष-हरण-मणि)
चहुँगति-फनी-विष-हरण-मणि, दुःख-पावक-जल-धार |
शिव-सुख-सुधा-सरोवरी, सम्यक-त्रयी निहार ||
ॐ ह्रीं सम्यक रत्नत्रय धर्म ! अत्र अवतर अवतर संवौषट (आव्हानं जय)|
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ : (स्थापनं जय) |
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट (संनिहिधिकरणं जय) |
क्षीरोदधि उनहार,उज्जवल जल अति सोहनो|
जनम-रोग निरवार, सम्यक रत्नत्रय भजुं ||
ॐ ह्रीं सम्यक-रत्नात्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशाय जलं नि. स्वाहा |
चन्दन-केसर-गरी,परिमल-महा-सुरंग-मय |
जनम-रोग निरवार, सम्यक रत्नत्रय भजुं ||
ॐ ह्रीं सम्यक-रत्नात्राय भव-आताप-विनाशाय चन्दनं नि. स्वाहा |
तंदुल-अमर-चितार, वासमती-सुखदास के |
जनम-रोग निरवार, सम्यक रत्नत्रय भजुं ||
ॐ ह्रीं सम्यक-रत्नात्राय अक्षय-पद-प्राप्ताये अक्षतं नि. स्वाहा |
महकें फुल अपार, अली गुजै ज्यों थुति करे
जनम-रोग निरवार, सम्यक रत्नत्रय भजुं ||
ॐ ह्रीं सम्यक-रत्नात्राय काम-बाण-विध्वंसनाय पुष्पं नि. स्वाहा |
लाडू बहु विस्तार, चीकन मिष्ट सुगंध युक्त |
जनम-रोग निरवार, सम्यक रत्नत्रय भजुं ||
ॐ ह्रीं सम्यक-रत्नात्राय क्षुधा-रोग-विनाशाय नैवेद्यं नि. स्वाहा |
दीप-रतनमय सार, जोत प्रकाशे जगत में |
जनम-रोग निरवार, सम्यक रत्नत्रय भजुं ||
ॐ ह्रीं सम्यक-रत्नात्राय मोहान्धकार-विनाशाय दीपं नि. स्वाहा |
धुप सुवास विथार, चन्दन अगर कपूर की |
जनम-रोग निरवार, सम्यक रत्नत्रय भजुं ||
ॐ ह्रीं सम्यक-रत्नात्राय अष्ट-कर्म-दहनाय धूपं नि. स्वाहा |
फल शोभा अधिकार, लौंगे छुआरे जायफल |
जनम-रोग निरवार, सम्यक रत्नत्रय भजुं ||
ॐ ह्रीं सम्यक-रत्नात्राय महा-मोक्ष-फल-प्राप्ताये फलं नि. स्वाहा |
आठ दरब निरधार, उत्तम सो उत्तम लिये |
जनम-रोग निरवार, सम्यक रत्नत्रय भजुं ||
ॐ ह्रीं सम्यक-रत्नात्राय अनर्घ-पद-प्राप्ताये अर्घं नि. स्वाहा |
सम्यक दर्शन ‘ज्ञान’, व्रत शिव-मग तीनो मयी |
पार उतारन आन, ‘ध्यानात’ पूजों व्रत सहित ||
ॐ ह्रीं सम्यक-रत्नात्राय पूर्णार्घ्यं नि. स्वाहा |