24.करू आरती वर्धमान की

करौं आरती वर्द्धमानकी।पावापुर निरवान थान की।


करौं आरती वर्द्धमानकी।पावापुर निरवान थान की।

राग बिना सब जगजन तारे ।द्वेष बिना सब कर्म विदारे । 

शील धुरंधर शिव तिय भोगी।मनवच कायन कहिये योगी।

करौं आरती वर्द्धमानकी।पावापुर निरवान थान की। 

रत्नत्रय निधि परिग्रह हारी।ज्ञानसुधा भोजनव्रतधारी।  

करौं आरती वर्द्धमानकी।पावापुर निरवान थान की।

लोक अलोक व्यापै निजमांहीं।सुखमय इंद्रिय सुखदुख नाहीं । 

करौं आरती वर्द्धमानकी।पावापुर निरवान थान की। 

पंचकल्याणकपूज्य विरागी।विमल दिगंबर अबंर त्यागी। क

आरती वर्द्धमानकी।पावापुर निरवान थान की। 

गुनमनि भूषन भूषित स्वामी । जगत उदास जगंतर स्वामी ।

करौं आरती वर्द्धमानकी।पावापुर निरवान थान की। 

कहै कहां लौ तुम सबजानौं । ‘द्यानत’ की अभिलाषा प्रमानौ ।

करोआरती वर्द्धमानकी।पावापुर निरवान थान की।