8.चंद्रप्रभु भगवान की आरती

म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत,
 म्हारे मन भार्इ जी ||
सावन सुदि दशमी तिथि आर्इ, 
प्रगटे त्रिभुवन रार्इ जी ||

अलवर  प्रांत में नगर तिजारा,
 दरसे देहरे मांही जी ||
सीता सती ने तुमको ध्याया, 
अग्नि में कमल रचाया जी ||

मैना सती ने तुमको ध्याया,
 पति का कुष्ट मिटाया जी ||
जिनमें भूत प्रेत नित आते,
 उनका साथ छुड़ाया जी ||

सोमा सती ने तुमको ध्याया,
 नाग का हार बनाया जी ||
मानतुंग मुनि तुमको ध्याया, 
तालों को तोड़ भगाया जी ||

जो भी दु:खिया दर पर आया, 
उसका कष्ट मिटाया जी ||
अंजन चोर ने तुमको ध्याया, 
शस्त्रों से अधर उठाया जी ||

सेठ सुदर्शन तुमको ध्याया,
 सूली का सिंहासन बनाया जी ||
समवसरण में जो कोर्इ आया, 
उसको पार लगाया जी ||

रत्न-जड़ित सिंहासन सोहे, 
ता में अधर विराजे जी ||
तीन छत्र शीष पर सोहें,
 चौंसठ चंवर ढुरावें जी ||

ठाड़ो सेवक अर्ज करै छै, 
जनम मरण मिटाओ जी ||
भक्त तुम्हारे तुमको ध्यावैं, 
बेड़ा पार लगाओ जी ||