7.श्री देबारी पार्श्वनाथ पूजन
दोहा जिन चरणों को पूजते सुरनपति महान ।
बालब्रह्म उपसर्ग विजय तेइसवे भगवान।
हाथ जोड़ सिर नायकर करूं स विधि आव्हान।
देबारी के पार्श्वनाथ मम हृदय विराजो आन।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिरणम्)
अथाष्टक
मुनि मन सम पावन जल लेकर,श्री जिन चरण पखारु आय।
जन्म-जरा दु:ख मीठे हमारा, यही भावना मन मे भाय
ममता वारुँ समता धारुँ,मन में समकित श्रद्धा लाय।
करूँ वंदना पार्श्वचरण की , देबारी में शीश झुकाय।
ॐ ह्रीं श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु- विनाशनाय जलं निर्वपामिति स्वाहा।1
शीतल सुरभित मलयज चंदन लाय चढ़ाऊँ प्रभुवर पाय।
भव आताप दूर हो जाए ,यही भावना मन में भाय।
ममता वारु समता धारू,मन में समकित श्रद्धा लाय
करूं वंदना पार्श्वचरण की , देबारी में शीश झुकाए।
ॐ ह्रीं श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय ससांरताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामिति स्वाहा।2
चंद्रकिरण मुक्ता सम उज्जवल, पुंजं चढ़ाउ अक्षत लाय।
अक्षत पद पाऊँ अविनशकर, यही भावना मन में भाय।
ममता वारु समता धारू,मन में समकित श्रद्धा लाय।
करूं वंदना पार्श्वचरण की , देबारी में शीश झुकाए।
ॐ ह्रीं श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामिति स्वाहा।3
पारिजात मंदार अवनी के ,करूँ समर्पित पुष्प मंगाय।
मनसिज शर की मीटे वेदना यही भावना मन में भाय।
ममता वारु समता धारू,मन में समकित श्रद्धा लाय।
करूं वंदना पार्श्वचरण की , देबारी में शीश झुकाए।
ॐ ह्रीं श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामिति स्वाहा।4
षटरस अशन अनूपम मनहर, अग्र धराऊंँ थाल सजाय।
क्षुधा शांत हो जनम -जनम की, यही भावना मन में लाय।
ममता वारु समता धारू,मन में समकित श्रद्धा लाय।
करूं वंदना पार्श्वचरण की , देबारी में शीश झुकाए।
ॐ ह्रीं श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5
रत्नदीप की जगमग ज्योति, मंद पड़े जब तुम ढीग आय।
मोह मूड़मति होय प्रकाशित, यही भावना मन में लाय।
ममता वारु समता धारू,मन में समकित श्रद्धा लाय।
करूं वंदना पार्श्वचरण की , देबारी में शीश झुकाय।
ॐ ह्रीं श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामिति स्वाहा।6
दश विध धूप सुगंधित प्रासुक डारी धनजय धूम्र उड़ाय।
अष्ट कर्म अरि नष्ट होय बस यही भावना मन में भाय।
ममता वारु समता धारू,मन में समकित श्रद्धा लाय।
करूं वंदना पार्श्वचरण की , देबारी में शीश झुकाए।
ॐ ह्रीं श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7
दिव्य फलों के संग पुण्य फल भेंट करूं मन भक्ति लाय।
महामोक्ष पद मिले निरा कुल यही भावना मन में लाय।
ममता वारु समता धारू,मन में समकित श्रद्धा लाय।
करूं वंदना पार्श्वचरण की , देबारी में शीश झुकाए।
ॐ ह्रीं श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। ।
अष्ट द्रव्य का अर्क अनुपम अर्पण करूं चरण ढिंग लाय।
नीज अनर्ग पद पाऊं में भी यही भावना मन में लाय।
ममता वारु समता धारू,मन में समकित श्रद्धा लाय।
करूं वंदना पार्श्वचरण की , देबारी में शीश झुकाए।
ॐ ह्रीं श्री देबारी पार्श्वनाथ aजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। ।9
पंचकल्याणक
सोलह सपने मत दिखाएं राणा त्याग गर्भ में आए।
बैसाख वर्दी दीया अभी रामा देवी सेव करें दिन यामा।
ॐ ह्रीं वैशाख-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भकल्याणक-प्राप्ताय श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1
कृष्ण पोर्श एकादशी मंगल अश्व सेन घर बजी बधाई।
जन्म लिया श्री वार्ष्णेय आनंद में डूबी जगत आई।
ॐ ह्रीं पौषकृष्ण-एकादश्यां जन्म कल्याणक-प्राप्ताय श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 2
कृष्ण पोर्श एकादशी पावन तोड़ दिए जग के सब बंधन।
पंच 3मुट्ठी कच्छ लॉन्च करत ही तुझे परिग्रह अंतर बाहर।
ॐ ह्रीं पौषकृष्ण-एकादश्यां तपकल्याणक-प्राप्ताय श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 3
कृष्ण शेर की चोट अनुपम केवल रवि ने हरा महातम।
भावी जीवन की आनंद कारी खीरी दिव्य धनी जनकल्याण।
1 ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय श्री देबारी पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 5
स्वर्ण कूट पर आज विराजे योग रोज कर निज में सांचे।
श्रावण शुक्ला सप्तमी पावन कर्म काट कर हुए निरंजन।
ॐ ह्रीं श्रावणशुक्ल-सप्तम्यां मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय श्री देबारीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। ।५।
जयमाला
दोहा :
स्वर्ग चिन्ह शोभित चरण, नो हाथ उन्नत गात
हरित श्रुती ही पार्श्व को, कर जोड़ नाउ मात l
अश्वसेन शुद्ध वामा नंदन, काशीजी में जन्म लिया
श्रीरोदक से पांडुक शील पर, देवों ने अभिषेक किया
तीन ज्ञान के धारी जनमे ,तुमने सबको मोह लिया
लिए अणुव्रत अष्टम वय में, असीधारा व्रत धार लिया
एक दिन देखा एक तापसी, पंचागनी तप तपता था
उसकी अग्नि में एक जोड़ा, नागराज का जलता था
करुणा कर संबोधा उनको, महामंत्र नवकार दिया
मंद कशाई उन दोनों ने ,देव गति को प्राप्त किया
जाति स्मरण का पाय निमित्त ,वैराग्य ह्रदय में धार लिया
लोकतांत्रि देवों आकर नियोग संपूर्ण किया।
दो उपवास धारकर दीक्षा लेनी असत्य वन में जाय।
चार मास की मोना साधना चार घातिया नष्ट कराय।
हुए केवली समोशरण तब देवों ने आ रचवाया।
ओंकार मयी धनगर्ज ध्वनि में ,ज्ञान सुधारस छलकाया।
जन्मे मरे अकेला चेतन, पाप - पुण्य फल पाता है।
सुख - दु:ख भोगे एक अकेला अपनापन ठग जाता है।
जीव करें पुरुषार्थ प्रबल तो परम सिद्ध पद पाता है।
संयोगो में उलझे तो, भव- भव में भ्रमण कराता है।
एक सुधि श्रावक ने सोचा, माया आनी जानी है।
सार्थक हो मंदिर बनवाएं ,धर्म - ध्वजा फहरानी है।
दो हार सत्तावन संवत, तेरस फागुन सुदी आई।
जींनबिंब -जिनालय हुए प्रतिष्ठित ,जयकार गगन में गुंजाई।
श्याम वर्ण की प्रतिमा सुंदर ,सबके मन को भाती है।
तीर्थंकर सम दिव्या देशना ,बिल बोले दे जाती है।
त्याग तपस्या क्षमा साधना, देखो ऐसी होती है।
जनम - जनम के परीषहो से दृढ़ से दृढ़तम होती है।
नहीं मिटाता वैर- वैर को, पल -पल दाह बढ़ाता है।
इसके दावानल में जीवन ईंधन बन जल जाता है।
पर प्रभु भक्तों पर तो निश्चित, आंच कभी नहीं आई है।
नीर अगन से हार सर्प औ, असि से माल बनाई है।
यही भावना लिए हृदय में ,पूजा आज रचाई है।
तुमने तारे कई आज प्रभु, मेरी बारी आई है।
जब तक नहीं मिलेगी मुक्ति, द्वार तुम्हारे आयेंगे।
पाकर मोक्ष सदन अविनाशी, निज में ही रम जायेंगे।
ॐ ह्रींश्री दिवारीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देबारी के पार्श्वनाथ की पूजन करें उदात्त।
भव संताप मेटकर पावें नूतन मुक्ति प्रभात
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।