19. श्री मल्लीनाथ चालीसा

मोहमल्ल मद-मर्दन करते, 
मन्मथ दुर्द्धर का मद हरते ।
धैर्य खड्ग से कर्म निवारे,
 बालयति को नमन हमारे ।।

बिहार प्रान्त ने मिथिला नगरी, 
राज्य करें कुम्भ काश्यप गोत्री ।
प्रभावती महारानी उनकी,
 वर्षा होती थी रत्नों की ।।

अपराजित विमान को तजकर, 
जननी उदर वसे प्रभु आकर ।
मंगसिर शुक्ल एकादशी शुभ दिन,
 जन्मे तीन ज्ञान युन श्री जिन ।।

पूनम चन्द्र समान हों शोभित, 
इन्द्र न्हवन करते हो मोहित ।
ताण्डव नृत्य करें खुश होकर, 
निररवें प्रभुकौ विस्मित होकर ।।

बढे प्यार से मल्लि कुमार, 
तन की शोभा हुई अपार ।
पचपन सहस आयु प्रभुवर की, 
पच्चीस धनु अवगाहन वपु की ।।

देख पुत्र की योग्य अवस्था, 
पिता व्याह को को व्यवस्था ।
मिथिलापुरी को खूब सजाया,
 कन्या पक्ष सुन कर हर्षाया ।।

निज मन मेँ करते प्रभु मन्थन, 
है विवाह एक मीठा बन्धन ।
विषय भोग रुपी ये कर्दम, 
आत्मज्ञान को करदे दुर्गम ।।

नही आसक्त हुए विषयन में, 
हुए विरक्त गए प्रभु वन मेँ ।
मंगसिर शुक्ल एकादशी पावन, 
स्वामी दीक्षा करते धारण ।।

दो दिन का धरा उपवास, 
वन में ही फिर किया निवास ।
तीसरे दिन प्रभु करे विहार, 
नन्दिषेण नृप वे आहार ।।

पात्रदान से हर्षित होकर,
 अचरज पाँच करें सुर आकर ।
मल्लिनाथ जी लौटे वन ने, 
लीन हुए आतम चिन्तन में ।।

आत्मशुद्धि का प्रबल प्रमाण,
 समय में उपजा ज्ञान ।
केवलज्ञानी हुए छः दिन में, 
घण्टे बजने लगे स्वर्ग में ।।

समोशरण की रचना साजे, 
अन्तरिक्ष में प्रभु बिराजे ।
विशाक्ष आदि अट्ठाइस गणधर,
 चालीस सहस थे ज्ञानी मुनिवर ।।

पथिकों को सत्पथ दिखलाया,
 शिवपुर का सन्मार्ग बताया ।
औषधि-शास्त्र- अभय- आहार,
 दान बताए चार प्रकार ।।

पंच समिति और लब्धि पाँच,
 पाँचों पैताले हैं साँच ।
षट् लेश्या जीव षट्काय, 
षट् द्रव्य कहते समझाय ।।

सात त्त्व का वर्णन करते,
 सात नरक सुन भविमन डरते ।
सातों नय को मन में धारें, 
उत्तम जन सन्देह निवारें ।।

दीर्घ काल तक दिए उपदेश, 
वाणी में कटुता नहीं लेश ।
आयु रहने पर एक मान, 
शिखर सम्मेद पे करते वास ।।

योग निरोध का करते पालन,
 योग करें प्रभु धारण ।
कर्म नष्ट कीने जिनराई, 
तनंक्षण मुक्ति- रमा परणाई ।।

फाल्गुन शुक्ल पंचमी न्यारी, 
सिद्ध हुए जिनवर अविकारी ।
मोक्ष कल्याणक सुर- नर करते, 
संवल कूट की पूजा करते ।।

चिन्ह ‘कलश’ था मल्लिनाथ का,
 जीन महापावन था उनका ।
नरपुंगव थे वे जिनश्रेष्ठ, 
स्त्री कहे जो सत्य न लेश ।।

कोटि उपाय करो तुम सोच, 
स्वीभव से हो नहीं मोक्ष ।
महाबली थे वे शुरवीर, 
आत्म शत्रु जीते धर- धीर ।।

अनुकम्पा से प्रभु मल्लि हैं, 
अल्पायु हो भव… वल्लि की ।
अरज यही है बस हम सब की,
 दृष्टि रहे सब पर करूणा की ।।