4.अमूल्य तत्व विचार(श्री युगल जी कृत)

बहु पुण्य-पुंज प्रसंग से ,
शुभ देह मानव मिला |
तो भी अरे! भव चक्र का, 
फेरा न एक भी टला |1

सुख प्राप्ति हेतु प्रयत्न करते,
 सुक्ख जाता दूर हैं |
तू क्यों भयंकर भाव-मरण, 
प्रवाह में चकचूर हैं |2

लक्ष्मी बढ़ी अधिकार भी, 
पर बढ़ गया क्या बोलिये |
परिवार और कुटुंब हैं क्या? 
वृद्धिनय पट तोलिये |3

संसार का बढ़ना अरे! 
नर देह की यह हार हैं |
नहिं एक क्षण तुझको अरे!
 इसका विवेक विचार हैं |4

निर्दोष सुख निर्दोष आनंद, 
लो जहाँ भी प्राप्त हो |
यह दिव्य अन्ततत्व जिससे, 
बन्धनों से मुक्त हो |5

पर वस्तु में मुर्छित न हो, 
इसकी रहे मुझको दया |
वह सुख सदा ही त्याज्य रे!
 पश्चात् जिसके दुःख भरा |6

मैं कौन हु? आया कहाँ से? 
और मेरा स्वरूप क्या?
सम्बन्ध दुखमय कौन हैं?
 स्वीकृत करूँ परिहार क्या |7

इसका विचार विवेकपूर्वक, 
शांत होकर कीजिये |
तो सर्व आत्मिक ज्ञान के,
 सिद्धांत का रस पीजिये |8

किसका वचन उस तत्व की, 
उपलब्धि में शिवभुत हैं |
निर्दोष नर का वचन रे! 
वह स्वानुभूति प्रसुत हैं |9

तारो अरे! तारो निजात्मा, 
शीघ्र अनुभव कीजिये |
सर्वात्म में समद्रष्टि दो, 
यह ह्रदय लाख लीजिये |10