20.श्री मुनिसुव्रतनाथ चालीसा

अरिहंत सिद्ध आचार्य को करुं प्रणाम |
उपाध्याय सर्वसाधू करते स्वपर कल्याण ||
जिनधर्म, जिनागम, जिनमंदिर पवित्र धाम |
वीतराग की प्रतिमा को कोटि-कोटि प्रणाम ||

जय मुनिसुव्रत दया के सागर | 
नाम प्रभु का लोक उजागर ||
सुमित्रा राजा के तुम नन्दा | 
मां शामा की आंखो के चन्दा ||

श्यामवर्ण मूरत प्रभू की प्यारी |
 गुणगान करें निशदिन नर नारी ||
मुनिसुव्रत जिन हो अन्तरयामी | 
श्रद्धा भाव सहित तुम्हें प्रणामी ||

भक्ति आपकी जो निशदिन करता | 
पाप ताप भय संकट-हरता ||
प्रभू ; संकटमोचन नाम तुम्हारा | 
दीन दुखी जीवों का सहारा ||

कोई दरिद्री या तन का रोगी | 
प्रभू दर्शन से होते हैं निरोगी ||
मिथ्या तिमिर भयो अति भारी | 
भव भव की बाधा हरो हमारी ||

यह संसार महा दुख दाई | 
सुख नहीं यहां दुख की खाई ||
मोह जाल में फंसा है बंदा | 
काटो प्रभु भव भव का फंदा ||

रोग शोक भय व्याधि मिटावो |
 भव सागर से पार लगावो ||
घिरा कर्म से चौरासी भटका | 
मोह माया बन्धन में अटका ||

संयोग-वियोग भव भव का नाता |
राग द्वेष जग में भटकाता ||
हित मित प्रित प्रभू की वाणी | 
स्वपर कल्याण करें मुनि ध्यानी ||

व सागर बीच नाव हमारी | 
प्रभु पार करो यह विरद तिहारी ||
मन विवेक मेरा अब जागा | 
प्रभु दर्शन से कर्ममल भागा ||


आपका जपे जो भाई |
 लोका लोक सुख सम्पदा पाई ||
कृपा दृष्टी जब आपकी होवे | 
धन आरोग्य सुख समृधि पावे ||

प्रभु चरणन में जो जो आवे |
भक्ति फल वांच्छित पावे ||
प्रभु आपका चमत्कार है न्यारा | 
संकट मोचन तुम्हारा ||

सर्वज्ञ अनंत चतुष्टय के धारी | 
मन वच तन वंदना हमारी ||
सम्मेद शिखर से मोक्ष सिधारे | 
उद्धार करो मैं शरण तिहांरे ||

महाराष्ट्र का पैठण तीर्थ | 
सुप्रसिद्ध यह अतिशय क्षेत्र ||
मनोज्ञ मन्दिर बना है भारी |
 वीतराग की प्रतिमा सुखकारी ||

चतुर्थ कालीन मूर्ति है निराली | 
मुनिसुव्रत प्रभू की छवि है प्यारी ||
मानस्तंभ उत्तग की शोभा न्यारी | 
देखत गलत मान कषाय भारी ||

मुनिसुव्रत शनिग्रह अधिष्ठाता | 
दुख संकट हरे देवे सुख साता ||
शनि अमावस की महिमा भारी | 
दूर-दूर से आते नर नारी ||

मुनिसुव्रत दर्शन महा हितकारी | 
मन वच तन वंदना हमारी ||

सोरठाः-
सम्यक् श्रद्धा से चालीसा, 
चालीस दिन पढिये नर-नार |
मुक्ति पथ के राही बन, 
भक्ति से होवे भव पार ||