21.श्री नमिनाथ चालीसा
सतत पूज्यनीय भगवान,
नमिनाथ जिन महिभावान ।
भक्त करें जो मन में ध्याय,
पा जाते मुक्ति-वरदान ।
जय श्री नमिनाथ जिन स्वामी,
वसु गुण मण्डित प्रभु प्रणमामि ।
मिथिला नगरी प्रान्त बिहार,
श्री विजय राज्य करें हितकर ।
विप्रा देवी महारानी थीं,
रूप गुणों की वे खानि थीं ।
कृष्णाश्विन द्वितीया सुखदाता,
षोडश स्वप्न देखती माता ।
अपराजित विमान को तजकर,
जननी उदर वसे प्रभु आकर ।
कृष्ण असाढ़- दशमी सुखकार,
भूतल पर हुआ प्रभु- अवतार ।
आयु सहस दस वर्ष प्रभु की,
धनु पन्द्रह अवगाहना उनकी ।
तरुण हुए जब राजकुमार,
हुआ विवाह तब आनन्दकार ।
एक दिन भ्रमण करें उपवन में,
वर्षा ऋतु में हर्षित मन में ।
नमस्कार करके दो देव,
कारण कहने लगे स्वयमेव ।
ज्ञात हुआ है क्षेत्र विदेह में,
भावी तीर्थंकर तुम जग में ।
देवों से सुन कर ये बात,
राजमहल लौटे नमिनाथ ।
सोच हुआ भव- भव ने भ्रमण का,
चिन्तन करते रहे मोचन का ।
परम दिगम्बर व्रत करूँ अर्जन,
तकरूँ उपार्जन ।
सुप्रभ सुत को राज सौंपकर,
गए चित्रवन ने श्रीजिनवर ।
दशमी असाढ़ मास की कारी,
सहस नृपति संग दींक्षाधारी ।
दो दिन का उपवास धारकर,
आतम लीन हुए श्री प्रभुवर ।
तीसरे दिन जब किया विहार,
भूप वीरपुर दें आहार ।
नौ वर्षों तक तप किया वन में,
एक दिन मौलि श्री तरु तल में ।
अनुभूति हुई दिव्याभास,
शुक्ल एकादशी मंगसिर मास ।
नमिनाथ हुए ज्ञान के सागर,
ज्ञानोत्सव करते सुर आकर ।
समोशरण था सभा विभूषित,
मानस्तम्भ थे चार सुशोभित ।
हुआ मौनभंग दिव्य धवनि से,
सब दुख दूर हुए अवनि से ।
आत्म पदार्थ से सत्ता सिद्ध,
करता तन ने ‘अहम्’ प्रसिद्ध ।
बाह्य़ोन्द्रियों में करण के द्वारा,
अनुभव से कर्ता स्वीकारा ।
पर…परिणति से ही यह जीव,
चतुर्गति में भ्रमे सदीव ।
रहे नरक-सागर पर्यन्त,
सहे भूख – प्यास तिर्यन्च ।
हुआ मनुज तो भी सक्लेश,
देवों में भी ईष्या-द्वेष ।
नहीं सुखों का कहीं ठिकाना,
सच्चा सुख तो मोक्ष में माना ।
मोक्ष गति का द्वार है एक,
नरभव से ही पाये नेक ।
सुन कर मगन हुए सब सुरगण,
व्रत धारण करते श्रावक जन ।
हुआ विहार जहाँ भी प्रभु का,
हुआ वहीं कल्याण सभी का ।
करते रहे विहार जिनेश,
एक मास रही आयु शेष ।
शिखर सम्मेद के ऊपर जाकर,
प्रतिमा योग धरा हर्षा कर ।
शुक्ल ध्यान की अग्नि प्रजारी,
हने अघाति कर्म दुखकारी ।
अजर… अमर… शाश्वत पद पाया,
सुर- नर सबका मन हर्षाया ।
शुभ निर्वाण महोत्सव करते,
कूट मित्रधर पूजन करते ।
प्रभु हैं नीलकमल से अलंकृत,
हम हों उत्तम फ़ल से उपकृत ।
नमिनाथ स्वामी जगवन्दन,
‘रमेश’ करता प्रभु- अभिवन्दन ।
जाप: … ॐ ह्रीं अर्ह श्री नमिनाथाय नम: