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अर्थ –मैं तीनों लोकों के स्वामियों द्वारा वन्दित, स्याद्वाद के प्रणेता, अनंत चतुष्टय (अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख, अनंत वीर्य) युक्त जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार करके मूलसंघ (आचार्य श्री कुन्द कुन्द स्वामी की परम्परा) के अनुसार सम्यक् दृष्टि जीवों के लिए कल्याणकारी जिन पूजा की विधि आरम्भ करता हूँ |1|
अर्थ -तीन लोक के गुरु जिन भगवान (के स्मरण) के लिए स्वस्ति (पुष्प अर्पण) | स्वभाव (अन्तत चतुष्टय) में सुस्थित महामहिम (के स्मरण) के लिये स्वस्ति (पुष्प अर्पण) | सम्यक दर्शन-ज्ञान, चारित्रमय (जिन भगवान के स्मरण) के लिये स्वस्ति (पुष्प अर्पण) | प्रसन्न, ललित एवं समवशरण रुप अदभुत् वैभव धारी (के स्मरण) के लिये स्वस्ति (पुष्प अर्पण) |2|
अर्थ -सतत् तरंगित निर्मल केवल ज्ञान अमृत प्रवाहक (के स्मरण) के लिये स्वस्ति (पुष्प अर्पण) | स्वभाव-परभाव के भेद-प्रकाशक (के स्मरण) के लिये स्वस्ति (पुष्प अर्पण) | तीनों लोकों के समस्त पदार्थों के ज्ञायक (के स्मरण) के लिये स्वस्ति (पुष्प अर्पण) | (भूत, भविष्यत्, वर्तमान) तीनों कालों में समस्त आकाश में फैले व्याप्त (के स्मरण) के लिये स्वस्ति (पुष्प अर्पण) |3|
अर्थ – अपने भावों की परम शुद्धता को पाने का अभिलाषी मैं देश व काल के अनुरुप जल चन्दनादि द्रव्यों को शुद्ध बनाकर जिन स्तवन, जिन बिम्ब दर्शन, ध्यान आदि अवलम्बों का आश्रय लेकर उन जैसा ही बनने हेतु पूजा के लक्ष्य (जिनेन्द्र भगवान की) की पूजा करता हूँ |4|
अर्थ – न उत्तम व पावन पौराणिक महापुरुषों में सचमुच गुरुता, न मुझ में लघुता है, (दोनों एक समान हैं) इस भाव से अपना समस्त पुण्य एकाग्र मन से विमल केवल ज्ञान रुपी अग्नि में होम करता हूँ |5|