2.श्री अजितनाथ चालीसा
श्री आदिनाथ को शिश नवा कर।
माता सरस्वती को ध्याय ।।
शुरू करूँ श्री अजितनाथ का।
चालीसास्व – सुखदाय ।।
जय श्री अजितनाथ जिनराज ।
पावन चिह्न धरे गजराज ।।
नगर अयोध्या करते राज ।
जितराज नामक महाराज ।।
विजयसेना उनकी महारानी ।
देखे सोलह स्वप्न ललामी ।।
दिव्य विमान विजय से चयकर ।
जननी उदर बसे प्रभु आकर ।।
शुक्ला दशमी माघ मास की ।
जन्म जयन्ती अजित नाथ की ।।
इन्द्र प्रभु को शीशधार कर ।
गए सुमेरू हर्षित हो कर ।।
नीर शीर सागर से लाकर ।
न्हवन करें भक्ति में भरकर ।।
वस्त्राभूषण दिव्य पहनाए ।
वापस लोट अयोध्या आए ।।
अजित नाथ की शोभा न्यारी ।
वर्ण स्वर्ण सम कान्तिधारी ।।
बीता बचपन जब हितकारी ।
हुआ ब्याह तब मंगलकारी ।।
कर्मबन्ध नही हो भोगो में ।
अन्तदृष्टि थी योगो में ।।
चंचल चपला देखी नभ में ।
हुआ वैराग्य निरन्तर मन में ।।
राजपाट निज सुत को देकर ।
हुए दिगम्बर दीक्षा लेकर ।।
छः दिन बाद हुआ आहार ।
करे श्रेष्ठि ब्रह्मा सत्कार ।।
किये पंच अचरज देवो ने ।
पुण्योपार्जन किया सभी ने ।।
बारह वर्ष तपस्या कीनी ।
दिव्यज्ञान की सिद्धि नवीनी ।।
धनपति ने इन्द्राज्ञा पाकर ।
रच दिया समोशरण हर्षाकर ।।
सभा विशाल लगी जिनवर की ।
दिव्यध्वनि खिरती प्रभुवर की ।।
वाद विवाद मिटाने हेतु ।
अनेकांत का बाँधा सेतु ।।
है सापेक्ष यहा सब तत्व ।
अन्योन्याश्रित है उन सत्व ।।
सब जिवो में है जो आतम ।
वे भी हो सक्ते शुद्धात्म ।।
ध्यान अग्नि का ताप मिले जब ।
केवल ज्ञान की की ज्योति जले तब ।।
मोक्ष मार्ग तो बहुत सरल है ।
लेकिन राहीहुए विरल है ।।
हीरा तो सब ले नही पावे ।
सब्जी भाजी भीङ धरावे ।।
दिव्यध्वनि सुन कर जिनवर की ।
खिली कली जन जन के मन की ।।
प्राप्ति कर सम्यग्दर्शन की ।
बगिया महकी भव्य जनो की ।।
हिंसक पशु भी समता धारे ।
जन्म जन्म का का वैर निवारे ।।
पूर्ण प्रभावना हुई धर्म की ।
भावना शुद्ध हुई भविजन की ।।
दुर दुर तक हुआ विहार ।
सदाचार का हुआ प्रचार ।।
एक माह की उम्र रही जब ।
गए शिखर सम्मेद प्रभु तब ।।
अखण्ङ मौन मुद्रा की धारण ।
कर्म अघाती हेतु निवारण ।।
शुक्ल ध्यान का हुआ प्रताप ।
लोक शिखर पर पहुँचे आप ।।
सिद्धवर कुट की भारी महिमा ।
गाते सब प्रभु के गुण – गरिमा ।।
विजित किए श्री अजित ने ।
अष्ट कर्म बलवान ।।
निहित आत्मगुण अमित है ।
अरूणा सुख की खान ।।