3.जिनवाणी की पूजा
दोहा
जनम जरा मृतु, क्षय करै,हरै कुनय जड रीति;
भव सगरसों ले तिरै, पूजै जिन वच प्रीति.
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वत्यै पुष्पांजलि निर्वपामीति स्वाहा.
छीरो दधि गंगा विमल,
तरंगा सलिल, अभंगा, सुख संगा;
भरि कंचन झारी, धारी निकारी,
तृषा निवारी, हित चंगा.
तीर्थंकर की ध्वनि, गण धर ने सुनि,
अंग रचे चुनि ज्ञान मई;
सो जिनवर वानी, शिव सुख दानी,
त्रिभुवन-मानी पूज्य भई.
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती-देव्यै जलं निर्वपामीति स्वाहा.
कर-पूर मंगाया चन्दन आया,
केशर लाया रंग भरी;
शारत-पद वंदो, मन अभिनंदों,
पाप निकंदो दाह हरी.
तीर्थंकर की ध्वनि, गण धर ने सुनि,
अंग रचे चुनि ज्ञान मई;
सो जिनवर वानी, शिव सुख दानी,
त्रिभुवन-मानी पूज्य भई.
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती देव्यै चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा.
सुख दास कमोदं,
धारक मोदं अति अनु मोदं चंद-समं;
बहु भक्ति बढ़ाई, कीरति गाई,
होहु सहाई, मात ममं.
तीर्थंकर की ध्वनि, गण धर ने सुनि,
अंग रचे चुनि ज्ञान मई;
सो जिनवर वानी, शिव सुख दानी,
त्रिभुवन-मानी पूज्य भई.
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती देव्यै अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा.
बहु फूल सुवासं, विमल प्रकाशं,
आनंद रासं लाय धरे;
मम काम मिटायो, शील बढ़ायो,
सुख उपजायो दोष हरे.
तीर्थंकर की ध्वनि, गण धर ने सुनि,
अंग रचे चुनि ज्ञान मई;
सो जिनवर वानी, शिव सुख दानी,
त्रिभुवन-मानी पूज्य भई
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती देव्यै पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा.
पकवान बनाया, बहु धृत लाया,
सब विध भाया मिष्ठ महा;
पजुं थुति गाऊं, प्रीति बढ़ाऊं,
क्षुधा नशाऊं हर्ष लहा.
तीर्थंकर की ध्वनि, गण धर ने सुनि,
अंग रचे चुनि ज्ञान मई;
सो जिनवर वानी, शिव सुख दानी,
त्रिभुवन-मानी पूज्य भई.
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती देव्यै नैवेध्यम निर्वपामीति स्वाहा.
कर दीपक जोतं, तन क्षय होतं,
ज्योति उदोतं तुमहिं चढ़ै;
तुम हो परकाशक,
भरम विनाशक हम घट भासक ज्ञान बढ़ै
तीर्थंकर की ध्वनि, गण धर ने सुनि,
अंग रचे चुनि ज्ञान मई;
सो जिनवर वानी, शिव सुख दानी,
त्रिभुवन-मानी पूज्य भई.
ॐरीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती देव्यै दीपं निर्वपामीति स्वाहा.
शुभ गंध दशोंकर, पाव कमें धर,
धूप मनोहर खेवत हैं;
सब पाप जलावे,पुण्य कमावे,
दास कहावे सेवत हैं.
तीर्थंकर की ध्वनि, गण धर ने सुनि,
अंग रचे चुनि ज्ञान मई;
सो जिनवर वानी, शिव सुख दानी,
त्रिभुवन-मानी पूज्य भई.
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती देव्यै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा.
बादाम छुहारी, लोंग सुपारी,
श्री फल भारी ल्यावत हैं;
मन वांछित दाता मेट असाता,
तुम गुन माता, ध्यावत हैं.
तीर्थंकर की ध्वनि, गण धर ने सुनि,
अंग रचे चुनि ज्ञान मई;
सो जिनवर वानी, शिव सुख दानी,
त्रिभुवन-मानी पूज्य भई.
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती देव्यै फलम् निर्वपामीति स्वाहा.
नयनन सुख कारी, मृदु गुन धारी,
उज्जवल भारी, मोल धरैं;
शुभ गंध सम्हारा, वसन निहारा,
तुम तन धारा ज्ञान करैं.
तीर्थंकर की ध्वनि, गण धर ने सुनि,
अंग रचे चुनि ज्ञान मई;
सो जिनवर वानी, शिव सुख दानी,
त्रिभुवन-मानी पूज्य भई.
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती देव्यै अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा.
जल चंदन अक्षत फल चरु,
अरु दीप धूप अति फल लावै;
पूजा को ठानत जो तुम जानत,
सो नर द्यानत सुख पावै.
तीर्थंकर की ध्वनि, गण धर ने सुनि,
अंग रचे चुनि ज्ञान मई;
सो जिनवर वानी, शिव सुख दानी,
त्रिभुवन-मानी पूज्य भई.
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती देव्यै अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा.
जयमाला
सोरठा
ओंकार ध्वनि सार, द्वाद-शांग वाणी विमल;
नमों भक्ति उर धार, ज्ञान करै जड़ता हरै.
पहलो आचा रंग बखानो,
पद अष्टा-दश सहस प्रमानो;
दूजो सूत्र कृतं अभिलाष,
तीस सहस गुरु भाषं.
तीजो ठाना अंग सुजानं,
सहस बयालिस पद सरधानं;
चौथो सम वायांग निहारं,
चौसठ सहस लाख इक धारम्.
पंचम व्याख्या प्रज्ञप्ति दरसं,
दोय लाख अटठाइस सहसं;
छटठो ज्ञातृ कथा विस्तारं,
पांच लाख छप्पन हज्जारं.
सप्तम उपास काध्य नंगं,
सत्तर सहस ग्यार लख भंगं;
अष्टम अंत कृत दस ईसं,
सहस अठाइस लाख तेईसं.
नवम अनुत्तर दश सुविशालं,
लाख बानवै सहस चवालं;
दशम प्रश्न व्याकरण विचारं,
लाख तिरानव सोल हजारं.
ग्यारस सूत्र विपाक सु भाखं,
एक कोड चौरासी लाखं;
चार कोड़ि अरु पंद्रह लाखं,
दो हजार सब पद गुरु शाखं.
द्वादश दृष्टि वाद पन भेदं,
इक सो आठ कोड़ि पन वेदं;
अड़सठ लाख सहस छप्पन हैं,
सहित पंच पद मिथ्या हन हैं.
इक सौ बारह कोड़ि बखानो,
लाख तिरासी ऊपर जानो;
ठावन सहस पंच अधिकाने,
द्वादश अंग सर्व पद माने.
साढ़े इकावन आठ हि लाखं,
सहस चुरासी छह सौ भाखं;
साढ़े इकीस श्लोक बताये,
एक एक पद के ये गाये.
दोहा
जा बानी के ज्ञान ते, सूझे लोक अलोक;
ज्ञानत जग जय-वंत हो, सदा देत हूँ धोक.
ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भ्व सरस्वती देव्यै महार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा.