14.जिनवाणी स्तुति- मिथ्यातम नासवे को,विद्यासागर जी महाराज

मिथ्यातम नासवे को,ज्ञान के प्रकासवे को,
आपा-पर भासवे को,भानु-सी बखानी है ।
छहों द्रव्य जानवे को,बन्ध-विधि भानवे को,
स्व-पर पिछानवे को,परम प्रमानी है ॥

 

अनुभव बतायवे को,जीव के जतायवे को,
काहू न सतायवे को,भव्य उर आनी है ।
जहाँ-तहाँ तारवे को,पार के उतारवे को,
सुख विस्तारवे को,ये ही जिनवाणी है ॥

 

हे जिनवाणी भारती,तोहि जपों दिन रैन,
जो तेरी शरणा गहै,सो पावे सुख चैन ।
जा वाणी के ज्ञान तें,सूझे लोकालोक,
सो वाणी मस्तक नवों,सदा देत हों ढोक ॥