15. जिनवाणी स्तुति ,माँ जिनवाणी ममता न्यारी,
माँ जिनवाणी ममता न्यारी,
प्यारी प्यारी गोद हैं थारी।
आँचल में मुझको तू रख ले,
तू तीर्थंकर राज दुलारी ॥
वीर प्रभो पर्वत निर्झरनी,
गौतम के मुख कंठ झरी हो ।
अनेकांत और स्यादवाद की,
अमृत मय माता तुम्ही हो ।
भव्य जानो की कर्ण पिपिसा,
तुमसे शमन हुई जिनवाणी ॥
आँचल में मुझको तू रख ले ०
माँ जिनवाणी ०
सप्त्भंगमय लहरों से माँ,
तू ही सप्त तत्व प्रगटाये ।
द्रव्य गुणों अरु पर्यायों का,
ज्ञान आत्मा में करवाये ।
हेय ज्ञेय अरु उपादेय का,
बहन हुआ तुमसे जिनवाणी ॥
आँचल में मुझको तू रख ले ०
माँ जिनवाणी ०
तुमको जानू तुमको समझू,
तुमसे आतम बोध में पाऊ ।
तेरे आँचल में छिप छिप कर,
दुग्धपान अनुयोग का पाऊ ।
माँ बालक की रक्षा करना
मिथ्यातम को हर जिनवाणी ॥
आँचल में मुझको तू रख ले ०
माँ जिनवाणी ०
धीर बनू में वीर बनू माँ,
कर्मबली को दल दल जाऊ ।
ध्यान करू स्वाध्याय करू बस,
तेरे गुण को निशदिन गाऊ ।
अष्ट करम की हान करे यह,
अष्टम क्षिति को दे जिनवाणी ॥
आँचल में मुझको तू रख ले ०
माँ जिनवाणी ०
ऋषि यति मुनि सब ध्यान धरे माँ,
शरण प्राप्त कर कर्म हरे ।
सदा मात की गोद रहू में,
ऐसा सिर आशीष फले ।
नमन करे स्यादवाद मति नित,
आत्म सुधारस दे जिनवाणी ॥
आँचल में मुझको तू रख ले ०
माँ जिनवाणी ०