19.समाधि भावना-दिन रात मेरे स्वामी

दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊं,

देहांत के समय में,तुमको न भूल जाऊं ।टेक

शत्रु अगर कोई हो, संतुष्ट उनको कर दूं,

समता का भाव धर कर,सबसे क्षमा कराऊं।1

त्यागूं आहार पानी,औषध विचार अवसर,

टूटे नियम न कोई,दृढ़ता हृदय में लाऊं ।2

जागें नहीं कषाएं, नहीं वेदना सतावे,

तुमसे ही लौ लगी हो,दुर्ध्यान को भगाऊं।3

आत्म स्वरूप अथवा,आराधना विचारूं,

अरहंत सिद्ध साधू,रटना यही लगाऊं ।4

धरमात्मा निकट हों,चर्चा धरम सुनावें,
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वे सावधान रक्खें,गाफिल न होने पाऊं ।5

जीने की हो न वांछा,मरने की हो न ख्वाहिश,

परिवार मित्र जन से,मैं मोह को हटाऊं ।6

भोगे जो भोग पहिले,उनका न होवे सुमिरन,

मैं राज्य संपदा या,पद इंद्र का न चाहूं ।7

रत्नत्रय का पालन,हो अंत में समाधि,

‘शिवराम’ प्रार्थना यह,जीवन सफल बनाऊं।8